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________________ भरहेसर-बाहुबली सज्झाय २२९ धारण कर शांत ही रहा । 'यदि पैर नीचे रखूगा तो बिचारा खरगोश दबकर मर जाएगा' यह विचार आते ही वह सावधान हो गया। हर तकलीफ सहने को वह तैयार था, पर अपनी अनुकूलता के कारण किसी की भी जानहानि या पर-पीडन उसे कत्तई मंजूर नहीं था। अपने इस सहज दया गुण के कारण इतनी बड़ी काया होने के बावजूद वह दावानल के शांत होने की प्रतीक्षा में एक पैर ऊँचा रखकर खड़ा रहा । तीसरे दिन दावानल शांत होने पर सभी प्राणियों के साथ खरगोश भी चला गया। हाथी पैर नीचे रखने गया परन्तु ढाई दिन में शरीर अकड़ जाने के कारण हाथी नीचे गिर पड़ा। मन में किसी के प्रति रोष या क्रोध न कर, वह दया के शुभ भावों में ही मग्न रहा और इन शुभ भावों में ही उसकी मृत्यु हो गई। खरगोश के प्रति की गई दया के कारण वह मरकर श्रेणिक राजा और धारिणी रानी का पुत्र मेघकुमार हुआ। युवावस्था में उसने प्रभु की देशना सुनकर, वैराग्य प्राप्तकर, आठ पत्नियों, राजकीय ऋद्धिसमृद्धि और भरपूर अनुकूलताओं का त्याग कर प्रभु के पास संयम का स्वीकार किया। दीक्षा की प्रथम रात को मेघकुमार का संथारा, क्रमानुसार सबसे छोटे होने के कारण, दरवाज़े के पास हुआ। आते-जाते साधुओं के पैर की धूल से गंदे बने संथारे पर मेघकुमार सो न सके और सोचने लगे कि कहाँ मेरा पहले का सुखवास और कहाँ यह दुःखवास ? मुझसे यह सब किस प्रकार सहन होगा ? इस प्रकार प्रतिकूलता से व्याकुल बने वे महाव्रत छोड़ने तक तैयार हो गए। सुबह प्रभु के पास गए। धर्म रथ के सारथी, प्रभु ने उसके पूर्वभव पर प्रकाश डाला । एक जीव पर दया करने से उसको कितना शुभ
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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