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सूत्र संवेदना-५
हमारे हृदय में भी सर्वजन एवं स्वजन की मात्र हितचिंता प्रगट हो ऐसी प्रार्थना करते हैं।” ५३. मेहकुमारो अ - और श्री मेघकुमार
अग्नि देखकर एक हाथी को जातिस्मरण ज्ञान हुआ। उसे याद आया कि उसने पिछले जन्म में दावानल से भागते हुए अनेक पीड़ाओं को सहन कर आखिर में मृत्यु को प्राप्त किया था। इसलिए उसने इस भव में दावानल से बचने के लिए एक बड़े मैदान को घास-तृण से रहित बनाया। एक बार जंगल में दावानल देखकर भय से आक्रांत वह अपने उस सुरक्षित मैदान में जैसे ही आया उसने देखा कि दावानल से अपने आप को बचाने के लिए दौड़ते-दौड़ते जंगल के बहुत सारे प्राणी उसी मैदान में इकट्ठे हो गए थे; नतीजा यह हुआ कि पूरा मैदान पशुओं से भर गया। इस समय हाथी को अपने साथियों के लिए ज़रा सा विचार नहीं आया कि 'ये मेरे साथी कैसे हैं ? मेरे ही स्थान में खुद निर्भीक बनकर जम गए । यह तो ठीक, पर मुझे खड़े होने के लिए अंश मात्र भी जगह नहीं रखी ।' ।
सबको समा लेने की भावनावाले विशाल दिल हाथी ने जैसे-तैसे कर अपनी जगह बनाई और वहाँ खड़ा हो गया। थोड़ी देर बाद खुजली आने पर उसने अपना एक पैर ऊँचा उठाया। पैर उठते ही नीचे की जगह को खाली देख एक खरगोश वहाँ सरक गया। खुजली कर उसने पैर नीचे रखने के लिए दृष्टि डाली; जिनवचन से अपरिचित ऐसे एक प्राणी में भी ये संस्कार थे कि चलते-फिरते, उठते-बैठते नीचे देखकर ही प्रवृत्ति करनी चाहिए, जिससे निष्कारण किसी भी जीव को पीड़ा न हो या उस की हत्या न हो जाए। उसने अपने पैर की जगह में खरगोश को पाया। द्वेष, अरुचि, अभाव, दुर्भाव के स्थान पर हाथी मैत्री भाव