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आयरिय-उवज्झाऐ सूत्र
बोलना या वैसा व्यवहार करना, संघ की महत्ता के प्रति विकल्प करना, उसका विकृत स्वरूप प्रकाशित करना इत्यादि अनेक प्रकार से श्रीसंघ की नींव कमजोर करने का कार्य किया हो, तो वह श्री संघ के प्रति अपराध है।
श्री संघ या उसके सदस्यों के साथ दुर्व्यवहार होने में कई बार परस्पर मतभेद काम करते हैं । इसलिए श्री संघ की आशातना आदि से बचने के लिए जब कोई मतभेद खड़ा हो तब मनभेद किए बिना, सतत एक-दूसरे की बात को समझने का यत्न करना चाहिए । शास्त्रों को पढ़कर सत्य तत्त्व को समझकर उसका स्वीकार करना चाहिए । जब तक सत्य समझ में न आए, तब तक मध्यस्थ रहकर सत्य की गवेषणा करने का पूरा यत्न करना चाहिए; पर अधूरा जानकर एक-दूसरों का अपमान करने की वृत्ति नहीं अपनानी चाहिए। 'धर्म क्षेत्र में भी ऐसे झगड़े चलते हैं!' - ‘ऐसे धर्म से क्या लाभ ?' . 'ऐसे धर्मगुरुओं का सम्मान कैसे करें ?'... ऐसे वचनों का कभी भी उच्चारण नहीं करना चाहिए । पूर्वकाल में तो जब भी मतभेद खड़े होते थे, तब उनका निवारण करने के लिए राजसभा में छ:छः महीनों तक वाद चलते थे । सब अपने पक्षों को शांति से प्रस्तुत करते थे । वस्तु का विचार किए बिना दूसरे के मतों को झूठा कहना, उनकी निंदा करना श्रमण संघ का अपराध है । सत्य तत्त्व की गवेषणा करने में प्रमाद करना, अपने लिए तो सभी एक हैं' ऐसा बोलकर सत्य को टिकाने के प्रति गैर ज़िम्मेदार बनना श्रीसंघ की आशातना है, क्योंकि ऐसा करने से प्रभु के उपकारी वचनों का ह्रास होता है।
चतुर्विध श्रीसंघ के प्रति ऐसा कोई भी अपराध हुआ हो, तो सबसे पहले अपने उन सभी अपराधों के लिए क्षमा माँगनी चाहिए । स्वयं क्षमा माँगने के बाद क्वचित् कर्माधीन अवस्था में प्रमाद से परवश