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________________ सूत्र संवेदना-५ प्रभु की आज्ञा को ही सर्वस्व माननेवाला समुदाय श्रमण संघ है। इसलिए प.पू.आ.श्री जयशेखरसूरीश्वरजी महाराज ने संबोधसत्तरी नाम के ग्रंथ में बताया है : आणाजुत्तो संघो, सेसो पुण अट्ठिसंघाओ... अर्थात् यदि एक साधु, एक साध्वी, एक श्रावक एवं एक श्राविका भी जिनाज्ञा से युक्त हो तो वह 'संघ' है । इसके अलावा हजारों का समुदाय भी हड्डियों का ढेर है । मोक्षमार्ग को वहन करने में श्रीसंघ की उपयोगिता और अनिवार्यता को ध्यान में रखकर स्वयं श्री तीर्थंकर परमात्मा भी संघ को 'नमो तित्थस्स' कहकर वंदन करते हैं । यह याद रखकर हर एक साधक को ध्यान रखना चाहिए कि, श्रीसंघ छद्मस्थ होने के बावजूद भी पूजनीय है । उसका हर एक पात्र आदरणीय है इसलिए उसकी किसी भी प्रकार की आशातना से बचना चाहिए । कर्म और कषाय के वशीभूत होकर श्रीसंघ के सदस्यों से भी कभी-कभी भूल हो जाती है, अतः एक 'माँ' की तरह साथ बैठकर, भूल पर विचार करके, संघ के सदस्यों को भूल से बचाना हम सब का कर्तव्य है । हम सबको एक दूसरे की भूलों को माफ कर, वात्सल्यपूर्वक ऐसा व्यवहार करना चाहिए जिससे संघ का प्रत्येक सदस्य आराधना में उत्साहित रहे । उसके बदले संघ के सदस्यों को किसी भी भूल से चिढ़ जाना, क्रोधित हो जाना, उनके साथ झगड़ा करना, चारों ओर उनकी निंदा करना, स्वयं वैसा काम करना जिससे श्रीसंघ की निंदा हो, संघ के सदस्यों के प्रति द्वेष, रोष, ईर्ष्या आदि दुर्भाव लाना, उनके साथ दुर्व्यवहार करना, किसी की संघ के प्रति आस्था डिग जाए वैसे वचन
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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