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________________ आयरिय-उवज्झाए सूत्र के प्रति अभाव, दुर्भाव, आवेश, ईर्ष्या वगैरे अपराध किया हो तो उसका स्मरण करके नतमस्तक होकर, आर्द्रस्वर में उनकी क्षमापना करनी चाहिए । यह गाथा बोलते हुए साधक सोचें कि : “महापुण्य के उदय से किसी भी अपेक्षा के बिना उपकार करके मेरे दोषों के पुंज को दूर करवानेवाले सद्गुरु भगवंतों का मिलाप हुआ है, मोक्षमार्ग में सतत सहायता करनेवाले शिष्य और साधर्मिक मिले हैं, कषाय रूपी लुटेरों से सतत रक्षा करनेवाला कुल, गण रूपी समुदाय मिला है। ऐसे उपकारियों की सहायता से मैं अवश्य मोक्षमार्ग पर प्रगति कर सकता था, फिर भी कषायों के अधीन होकर मैंने ऐसे उपकारियों के ऊपर अपकार किया। उनके छोटे दोषों को बड़ा माना । छोटी-छोटी बातों में मैंने उनके प्रति क्रोधादि भाव करके अपने दोष बढ़ाए है। भगवंत ! इन सारे अपराधों के लिए मैं अंतःकरणपूर्वक नतमस्तक होकर माफी माँगता हूँ। आप मुझे क्षमा करें । मेरे अपराधों को भूलकर पुनः मुझे अनुशासित करें। मेरी अनादिकालीन टेढ़ी चाल को बदलकर सीधी बनाने का सतत यत्न करें ।" सव्वस्स समणसंघस्स भगवओ अंजलिं करिअ सीसे । सळ खमावइत्ता खमामि सव्वस्स अहयं पि ।।२।। मस्तक पर अंजलि करके पूज्य श्री श्रमण संघ से क्षमा माँगता हूँ । श्री श्रमण संघ से अपने अपराधों की क्षमायाचना करके मैं भी उनको माफ करता हूँ।
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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