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भरहेसर-बाहुबली सज्झाय
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करूँगा और मैंने जिस देश में घोर हिंसाचार किया है, उसी देश में क्षमा धारण कर, लोगों का रोष और तिरस्कार सहन करके रहूँगा।' उनको उस देश में विचरण करते देख लोग उन्हें दंभी, महापापी, साधु के वेश में शैतान इत्यादि कहकर उनका तिरस्कार करते थे, उनको गालियाँ देते थे। सांसारिक सुख के कारण कई लोग लोहे के काँटे भी झेल लेते हैं; परन्तु जो कान में चुभनेवाले वचन रूपी काटों को सहन करते हैं, वे ही वीर पुरुष हैं। जब कोई प्रतिकार न हुआ तब लोगों ने उन्हें मिट्टी के गोलों से, पत्थरों और लकड़ियों से मारना शुरू किया । शुभ भावों में मग्न मुनि ने समता भाव से सब सहन किया। कभी भी अपना बचाव नहीं किया, कोई हलका विचार नहीं किया। उल्टा उन्हें यह विचार आया कि ये सब तो मेरे परम उपकारी हैं। खुद का घर कचरे से भरकर, मेरे कर्म रूपी कचरे को साफ कर रहे हैं । इस चिंतन के प्रभाव से धर्मध्यान और शुक्लध्यान प्रगट हुआ। कर्म का क्षय हुआ और उनकी आत्मा निर्मल बनी।
"हे महात्मा! आपने पाप का तीव्र पश्चात्ताप किया, उस पाप को खत्म करने के लिए प्रतिकूल परिस्थितियों को सहर्ष स्वीकार कर, उसमें समता अपनाकर केवलज्ञान भी प्राप्त किया। आपके चरणों में सिर झुकाकर इतनी प्रार्थना करता हूँ कि मैं भी प्रतिकूल परिस्थितियों में आपके जैसा ही प्रशान्त रह सकूँ।” ५०. सिज्जंस - श्री श्रेयांसकुमार युगादिनाथ ऋषभदेव प्रभु को निर्दोष भिक्षा के लिए भ्रमण करते हुए