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________________ २२१ भरहेसर-बाहुबली सज्झाय प्रतिमा की वीतरागी मुद्रा देखते ही वे असमंझस में पड़ गए, यह कैसा आभूषण है?, क्या है? ऐसी सतत विचारणा से उनको आत्मज्ञान हुआ, सुषुप्त दशा उजागर हुई, ‘ऐसा कहीं देखा है!' इसकी गहरी अनुप्रेक्षा से उन्हें जातिस्मरण ज्ञान हुआ। पूर्वजन्म की आराधना और विराधना का बोध हुआ। मन में एक तीव्र झंखना जागी कि ‘कब यह अनार्य देश छोडूं, बंधन तोडूं और सर्वविरति को प्राप्त करूँ ।' पर मोहाधीन पिता ने उन्हें रोक लिया। अपनी आत्मा के उत्थान की एक मात्र चाह से वे पिता के मज़बूत पहरे को तोड़कर, अनार्य देश का त्याग कर प्रभु के पास दीक्षा लेने दौड़ चले। मार्ग में उन्हें गोशाला मिला, पाखंडी मिले, तापस मिले। सबने उन्हें चलायमान करने का प्रयत्न किया, परन्तु आर्द्रकुमार ने अपने निर्मल वैराग्य से सबको निरुत्तर करके वीरप्रभु के चरण में जाकर संयम का स्वीकार किया। वर्षों तक दीक्षा पालने के बाद भोगावली कर्म का उदय हुआ; आर्द्रकुमार को फिर संसारवास का स्वीकार करना पड़ा। पिता के मोह-बंधन से छूटने में सफल आर्द्रकुमार कर्मवश अब पत्नी के मोह पाश से बंध गए । थोड़े वर्षों बाद पत्नी के स्नेहबंधन से छूटे तो बालक के स्नेह बंधन ने फँसा दिया। इसी प्रकार कर्म की परवशता के कारण वे २४ वर्ष संसार में रहे। अंत में फिर से दीक्षा लेकर, अनेकों को प्रतिबोधित करके कर्म हनन कर मोक्ष में गए । "हे मुनिवर! कर्म के कारण आपको स्नेह - बंधन ने बांध लिया, परन्तु कर्म पूर्ण होते ही आप उसे आसानी से तोड़ भी सके। आपको भावपूर्वक प्रणाम करके हम भी आप जैसी शक्ति की इच्छा करते हैं ।"
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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