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भरहेसर-बाहुबली सज्झाय
२१७ भिक्षु प्रतिमा की आराधना की। गुणरत्न संवत्सर नाम का तप करके वे श्री शजय तीर्थ के ऊपर अनशन करके अंतकृत केवली हुए । ८'/, करोड़ मुनिवरों के साथ जो आज भाडवा का डुंगर कहलाता है, वहाँ फा.सु. १३ के दिन मोक्ष में गए।
"हे आर्यपुत्रों ! आप कर्म में तो शूरवीर थे ही, धर्मक्षेत्र में भी आपकी शूरता खूब थी। आपकी वंदना करके धर्म क्षेत्र में आपके जैसे पराक्रम की प्रार्थना
करते हैं।” ४५. मूलदेवो अ - और श्री मूलदेव राजा
राजकुमार मूलदेव संगीतादि कला में निपुण थे, साथ-साथ बहुत बड़े जुआड़ी थे। इसलिए उनके पिता ने उनको देश निकाला दे दिया था। वे उज्जयिनी में आकर रहने लगे। वहाँ उन्होंने देवदत्ता नाम की गणिका तथा उसके कलाचार्य विश्वभूति को पराजित किया। पुण्यबल, कलाबल और मुनि को दिए गए दान के प्रभाव से हाथियों से समृद्ध विशाल राज्य और गुणानुरागी; कलाप्रिय, चतुर गणिका देवदत्ता के स्वामी हुए। बाद में वैराग्य से चारित्र लेकर उसका सुंदर पालन करके वे देवलोक गए। वहाँ से च्युत होकर मोक्ष जाएँगे।
"विलास से वैराग्य की मंज़िल को छूनेवाले है राजर्षि! आप जिन गुणों को पाकर राग और माया के बंधन से मुक्त हुए, वे सद्गुण हममें भी प्रगट हों, ऐसी प्रार्थना करते हैं।"
गाथा:
पभवो विण्हुकुमारो, अद्दकुमारो दढप्पहारी अ । सिज्जंस कूरगडू अ, सिज्जंभव मेहकुमारो अ ।।६।।