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सूत्र संवेदना-५
किया। शीलधर्म की रक्षा करने के लिए आचार्य ने संघ को भेजा तथा दूसरे अनेक प्रकार से राजा को समझाने का प्रयत्न किया; परन्तु दुराचारी राजा ने हठ न छोड़ी। यदि उसे छोड़ दिया तो राज्य में शील का महत्त्व ही लुप्त हो जाएगा; ऐसा सोचकर सूरिजी ने ९६ शक राजाओं को प्रतिबोध कर, गर्दभिल्ल पर चढ़ाई करके साध्वीजी को छुड़वाया।
"हे सूरीश्वर! देश में तो धर्म की रक्षा करने की हमारी क्षमता नहीं है परन्तु हमारे जीवन में हम सत्त्व और विवेकपूर्वक धर्म की रक्षा कर सकें, ऐसी कृपा करें ।"
जैन इतिहास में इनके बाद पंचमी की संवत्सरी को चौथ में बदलकर, केवली की तरह निगोद का यथार्थ वर्णन करके, इन्द्र को प्रतिबोधित करनेवाले और सीमंधर-स्वामी द्वारा प्रशंसित, दूसरे भी एक कालकाचार्य हुए हैं। इसके अलावा तीसरे कालकाचार्य भी हुए हैं जिन्होंने दत्त राजा से कहा था - 'सातवें दिन तुम्हारे मुँह में विष्टा पड़ेगी और तुम सातवीं नरक में जाओगे ।'
४३-४४. संबो-पज्जुण्णो - श्री शांबकुमार और श्री प्रद्युम्नकुमार -
अत्यंत पराक्रमी और बुद्धिशाली, ये दोनों कुमार श्रीकृष्ण राजा के पुत्र थे। शांब की माता जंबूवती और प्रद्युम्न की माता रूक्मिणी थी। ये दोनों बचपन से ही नटखट थे । कौमार्यावस्था में वे अनेक लीलाएँ और विविध पराक्रम करने में माहिर थे।
संसार रसिक इन दोनों भाइयों के जीवन की हर एक प्रवृत्ति और हर एक मनोवृत्ति को देखकर कोई भी नहीं कह सकता था कि ये दोनों वैरागी बनकर, इसी भव में मोक्ष को पा लेंगे; परन्तु जब उन्हें वैराग्य उत्पन्न हुआ, तब श्री नेमनाथ प्रभु के पास दीक्षा अंगीकार की और बारह