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भरहेसर-बाहुबली सज्झाय
कारण पूछे जाने पर, पत्नी ने जवाब दिया मनाक् = कुछ है । कुछ समय बाद, उन्होंने पुत्र को जन्म दिया, जो 'मनक' नाम से पहचाना
गया ।
पुत्र
मित्रों ने मस्ती में एक दिन मनक को 'बिना बाप' का कहा । इन शब्दों से उद्विग्न मनक 'माँ' से पिता के बारे में पूछकर, उन्हें खोजने निकल पड़ा । सद्भाग्य से वह स्वयं पिता शय्यंभवसूरि के पास ही पहुँच गया । उनके पिता मोहाधीन नहीं थे। उन्होंने जब जाना कि यह मेरा है और उसका मात्र छः महीने का आयुष्य है, तब उन्होंने उससे अपना रिश्ता गुप्त रखा, परन्तु वात्सल्य भाव से दीक्षा देकर संयम जीवन की शिक्षा दी। बालक छः महीने में साधु-धर्म का ज्ञान जल्दी प्राप्त कर सकें और सुंदर आराधना कर सके, इसलिए शय्यंभवसूरिजी ने दशवैकालिक की रचना की । मनक मुनि उसका अध्ययन कर छः महीने का चारित्र पालकर देवलोक में गए।
“हे बालमुनि ! दशवैकालिक जैसा महान आगम आपके निमित्त हमें मिला है। आज आपको प्रणाम कर हम प्रार्थना करते हैं कि वह हमारे जीवन में भी फलदायी बने ।"
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४२. कालयसूरि - श्री कालकाचार्य
श्री कालकाचार्य उत्सर्ग- अपवाद के वेत्ता, सत्त्वशाली और विवेकपूर्ण पराक्रम से जैनशासन का बेजोड़ रक्षण करनेवाले महान आचार्य थे। उन्होंने साध्वीजी के शील की खातिर वेश परिवर्तन करके दुराचारी राजा के साथ युद्ध कर शीलधर्म की रक्षा की ।
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यह घटना उज्जयिनी में घटी थी। वहाँ के गर्दभिल्ल राजा ने कालकाचार्य की अत्यंत रूपवती बहन साध्वी सरस्वती का अपहरण