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सूत्र संवेदना-५
संस्कृत छाया:
प्रभवः विष्णुकुमारः, आर्द्रकुमारः दृढप्रहारी च ।
श्रेयांसः कूरगडुः च, शय्यम्भवः मेघकुमारः च ।।६।। गाथार्थ :
प्रभवस्वामी, विष्णुकुमार, आर्द्रकुमार, दृढ़प्रहारी, श्रेयांस, कूरगडुमुनि, शय्यंभवसूरि और मेघकुमार ।।६।।
४६. पभवो - श्री प्रभवस्वामी शादी की पहली रात होने के बावजूद विकाररहित जंबूकुमार अपनी अप्सरा जैसी सुंदर आठ पत्नियों को वैराग्य की बातें समझा रहे थे। उस वक्त अवस्वापिनी और तालोद्धाटिनी विद्या के बल पर ५०० चोरों के साथ प्रभव चोर उनके यहाँ चोरी करने आया हुआ था।
जंबूकुमार के पुण्य प्रभाव से किसी देव ने इन पाँच सौ चोरों को स्तंभित कर दिया। उस समय जंबूकुमार का उनकी पत्नियों के साथ वैराग्य वर्धक संवाद सुनकर प्रभव चोर स्वयं भी वैरागी बन गया। उसने भी ५०० चोर साथियों सहित जंबूस्वामी के साथ दीक्षा ली।
चौदह पूर्व के ज्ञाता बनकर उन्होंने वीरप्रभु की तीसरी पाट को सुशोभित किया । उसके बाद जैनशासन की बागडोर सौंपने के लिए उन्होंने श्रमण तथा श्रमणोपासक संघ में अपनी नज़र दौड़ाई। कोई भी विशिष्ट पात्र न मिलने पर उन्होंने शय्यंभव ब्राह्मण को कुशलतापूर्वक प्रतिबोधित कर, चारित्र देकर शासन का नायक बनाया।
“धन्य हैं ऐसे चोर को जो ज्ञान-दर्शन-चारित्र रूप सच्चे रत्नों की चोरी कर, अपना आत्मकल्याण कर सके । उनके चरणों में मस्तक झुकाकर हम भी इन तीन रत्नों की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करें।"