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सूत्र संवेदना-५ और जिनमूर्तियों के अवशेष मिलते हैं । उन्होंने १,२५,००० नए जिनमंदिर बनवाए थे, १३००० मंदिरों का जिर्णोद्धार करवाया था, १,२५,००,००० नई प्रतिमाएँ भरवाईं थी और ७००० दान शालाएँ खुलवाई थीं। __ आर्यमहागिरिजी गजपद तीर्थ पर अनशन स्वीकार कर स्वर्ग गए
और आर्य सुहस्तिसूरिजी ने भी स्वर्ग की तरफ़ प्रयाण किया, दोनों वहाँ से च्युत होकर मोक्ष में जाएँगे।
“विशुद्ध संयम के आराधक, महान शासन प्रभावक महात्माओं के चरणों में मस्तक झुकाकर हम भी
शासन की रक्षा-प्रभावना में प्रयत्नशील बनें ।” ३८. अज्जरक्खिअ - श्री आर्यरक्षित सूरि - वर्तमान काल में हमारे जैसे अल्पज्ञ जीव भी आगम का ज्ञान प्राप्त कर सकें, इस हेतु से श्री आरक्षितसूरिजी महाराज ने आगमिक श्रुत को चार भागों में विभक्त कर दिया : १. द्रव्यानुयोग, २. गणितानुयोग, ३. चरणकरणानुयोग और ४. धर्मकथानुयोग ।
इस उपकारी आचार्य ने ब्राह्मण कुल में जन्म लिया था, परन्तु उनकी माता रुद्रसोमा जैन धर्म के रंग से रंगी परम श्राविका थी ।
पिता ने श्री आर्यरक्षितजी को वैदिक धर्मानुसार अध्ययन करने के लिए काशी भेजा । वहाँ से प्रकांड विद्वान बनकर जब वे अपने शहर लोटे, तब राजा ने प्रभावक स्वागतयात्रा द्वारा उनका सम्मान किया । पूरा शहर उनका सम्मान करने सामने गया, परन्तु उनकी 'माँ' नहीं गईं । 'माँ' के दर्शन को तरसते हुए सम्मान कार्य खत्म कर वे घर आए । घर में सामायिक में बैठी माँ से नतमस्तक होकर पूछा “दिनरात के परिश्रम से प्राप्त हुई मेरी विद्या से क्या आप खुश नहीं हो ?"