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सूत्र संवेदना-५
का फल है' समभाव में लीन यह महात्मा मृत्यु प्राप्त कर स्वर्ग की ओर चल दिए । ऐसे महात्मा के चरणों में मस्तक झुकाकर प्रार्थना करते हैं कि -
"हे महात्मा! हमें भी कषायों का उपशम, जीव और जड़ का विवेक और इन्द्रियों का संवर प्राप्त हों, ऐसा बल प्रदान करें।” ३६. अबाहुमुणी - और श्री युगबाहुमुनि विक्रमबाहु राजा और मदनरेखा रानी के पुत्र, इस मुनि का मूल नाम युगबाहु था। पराक्रमी और परम विवेकी इस मुनिने पूर्वभव में ज्ञानपंचमी की आराधना के प्रभाव तथा देवी और विद्याधरों की कृपा से अनेक विद्याएँ प्राप्त की थीं।
एक बार अनंगसुंदरी नाम की विद्याघर कन्या ने उन्हें चार प्रश्न पूछे। संसार में कलावान कौन है ? सुबुद्धिमान कौन है ? सौभागी कौन है ? और विश्व को जीतनेवाला कौन है? धर्मपरायण और व्यवहार कुशल बुद्धि प्रतिभा से श्री युगबाहु ने तुरंत ही जवाब दिया - पुण्य में रुचिवाले कलावान हैं। करुणा में तत्पर रहनेवाले बुद्धिमान हैं। मधुरभाषी सौभागी हैं। क्रोध को जीतनेवाले विश्वविजेता हैं। यह सुनकर अनंगसुंदरी ने उनके गले में वरमाला आरोपित कर दी और उसके पिता ने युगबाहु को विद्याधरों का अधिपति बनाकर संयम ग्रहण किया। कालक्रम से श्री युगबाहु ने भी अपने पिता के पास दीक्षा ली। ज्ञानपंचमी की आराधना करके वे केवली बने।
"इस मुनि के चरणों में मस्तक झुकाकर मोक्ष सुख के लिए, तपधर्म में आगे बढ़ने के लिए पराक्रम, विवेक और सत्त्व की प्रार्थना करें।”