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सूत्र संवेदना - ५
तनिक भी चलित नहीं होते और कहाँ मेरा चंचल और विकारी मन | एक नीच नट कन्या के संग से अपने पूरे वंश को मैंने कलंक लगा दिया ।' अपने और मुनि के बीच सरसों और मेरू जैसा अंतर भासित हुआ । ईनाम लेने के लिए इलाची के करोड़ उपाय करने के बावजूद भी नट कन्या के मोह में फँसे हुए राजा ने उन्हें कुछ भी नहीं दिया। इस तरफ़ मोदक वोहराने की अत्यंत आग्रहभरी विनंती के बावजूद भी निर्लोभी मुनि ने मोदक ग्रहण नहीं किया । यह देखकर आत्मनिंदा और गुणानुराग भरी चिंतन की धारा बहने से इलाची के मन की सभी मलिनताएँ दूर हो गई। रस्सी पर नृत्य करते-करते ही उन्होंने संसार के नृत्य का अंत कर, क्षपक श्रेणी का प्रारंभ किया। वैराग्य से वीतरागता प्रगट हुई और वे केवली बन गए ।
“ राग के स्थान पर वीतरागता प्रगट करनेवाले हे महामुनि! आपके चरणों में मस्तक झुकाकर वीतराग होने की इस कला की प्रार्थना करते हैं । "
३५. चिलाइपुत्तो - श्री चिलातिपुत्र
चिलाती नाम की एक सामान्य दासी का पुत्र पाप को पाप समझकर तीव्र पश्चात्ताप करने के एक मात्र गुण से, पतन की खाई से उन्नति के शिखर पर पहुँच गया । वह धनसेठ के घर में नौकरी करता था; उसके कुलक्षण को देखकर सेठ ने उसे निकाल दिया। तब वह जंगल में जाकर चोरों का सरदार बन गया । उसे सेठ की पुत्री सुषमा के प्रति अति राग था। एक बार 'धन तुम्हारा, सुषिमा मेरी' ऐसा करार कर चोरों को साथ लेकर उसने सेठ के घर लूट चलाई और सुषिमा को पकड़ लिया । सेठ, उसका पुत्र, और सिपाही सभी उसके पीछे दौड़े, परन्तु वह तो घोड़े के ऊपर सुषिमा को बिठाकर