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________________ भरहेसर-बाहुबली सज्झाय ऐसे निरपेक्ष बन गए कि सियारी ने पूरा शरीर टुकड़े-टुकड़े कर खा लिया, तो भी वे नहीं हिले। समताभाव से मरने के कारण वे पुनः नलिनीगुल्म विमान में ही उत्पन्न हुए। "हे समतामूर्ति मुनिवर ! एक दिन के संयम में शरीर और आत्मा का जैसा भेद आप कर सके, वैसा भेद हम भी कर पाएँ ।” ३३. धनो - धन्यकुमार धनसार सेठ और शीलवती सेठानी के सबसे छोटे पुत्र धन्यकुमार में उदारता, सज्जनता, निःस्पृहता, निडरता, साहसिकता, औचित्यता, निर्मलता, सरलता आदि अनेक गुण थे। उन्होंने पूर्वभव में शुद्ध अध्यवसाय से दान के द्वारा बहुत पुण्यानुबंधी पुण्य बाँधा था। पुण्य और अपनी तीक्ष्ण बुद्धि के प्रभाव से उन्होंने अखूट धनसंपत्ति का उपार्जन किया। एक रात उन्हें पता चला कि उनके भाई उनकी (धन्नाजी की) संपत्ति से हिस्सा चाहते हैं, तब अपने बड़े भाई के इस अनुचित व्यवहार से मन में लेश भी दुःर्भाव या अरुचि का भाव लाए बिना, बिना किसी को बताए, घर छोड़कर चले गए, जिससे उनके भाई उनकी संपत्ति का एक हिस्सा ही नहीं बल्कि पूरी संपत्ति का भोग कर सकें... कैसी उदारता !! सामान्यतया पिता की संपत्ति से भाई कुछ ज़्यादा माँग ले, तो सगे भाई और बाप के सामने भी न्यायालय के दरवाजे खट-खटानेवाले आज के स्वार्थी मनुष्य इस उदार वृत्ति को क्या समझ पाएँगें ? समय ने बहुत बार करवटें बदली। भाइयों ने सारी संपत्ति गवाँ दी। धन्नाजी ने शून्य से पुनः सृजन किया। भाइयों को सन्मान सहित पुनः घर बुलाया। क्षमा तथा नम्रता का ही यह प्रभाव था।
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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