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सूत्र संवेदना - ५
२९. जंबुपहु - श्री जंबूस्वामी
अखंड ब्रह्मचारी, अतुल संपत्ति के त्यागी और इस काल के अन्तिम केवली, श्री जंबुस्वामी की आत्म उन्नति के पीछे मुख्य दो गुण थे - विनय और दाक्षिण्य। भवदेव के भव में इन दो गुणों के कारण ही उन्होंने भाई के कहने से संयम ग्रहण किया था। वे जब संयम से विचलित हुए तब उनकी पत्नी नागिला ने उन्हें स्थिर किया । सरल एवं प्रज्ञापनीय भवदेव ने उच्च कोटि की संयम आराधना की ।
इस संयम के प्रभाव से वे दूसरे भव में शिवकुमार नामक राजकुमार हुए। विशुद्ध संयम के दृढ़ संस्कार पुनः जागृत हुए, परन्तु भूतकाल में बारह वर्ष तक संयम जीवन में भी नागिला का निरंतर ध्यान करने के कारण बंधे हुए चारित्र मोहनीय कर्म के उदय से वे संयम प्राप्त न कर सके। इसके बावजूद भी उन्होंने हार नहीं मानी। राजकुल में रहते हुए भी उन्होंने छठ्ठ के पारणे पर आयंबिल करके निर्दोष जीवनचर्या बिताने का व्रत धारण किया । वहाँ से मरकर वे अद्भुत कांतिवाले विद्युन्माली देव हुए । देवलोक में वे परमात्मा की भक्ति में लीन बने रहते ।
यह विद्युन्माली देव च्युत होकर ऋषभदत्त सेठ और धारिणी सेठानी के जंबू नाम के इकलौते पुत्र हुए। पूर्व भव के संयम के संस्कार और अपनी अद्भुत योग्यता के प्रभाव से जंबूस्वामी को सोलह वर्ष की उम्र में सुधर्मास्वामी की एक ही धर्मदेशना सुनकर वैराग्य उत्पन्न हुआ । इसके बावजूद माता-पिता के आग्रह से उन्होंने दूसरे दिन दीक्षा लेने की शर्त पर आठ कन्याओं के साथ विवाह किया।
वैराग्य वासित जंबूस्वामी ने शादी की प्रथम ही रात्रि में अपने प्रति गाढ़ राग और स्नेह रखनेवाली पत्नियों को संसार - पुष्ट प्रश्नों के