SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 212
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९९ भरहेसर-बाहुबली सज्झाय करें कि उनके जैसा महापरिवर्तन हमें भी प्राप्त हो।" "प्रणमु तुम्हारा पाय, प्रसन्नचंद्र... प्रणमु तुम्हारा पाय” २८. जसभद्दो - श्री यशोभद्रसूरि पाटलिपुत्र के यशोभद्र ब्राह्मण ने वैराग्य प्राप्तकर, श्री शय्यंभवसूरि के पास दीक्षा ली थी। अनुक्रम से वे चौदहपूर्व के ज्ञाता बने और वीरप्रभु की पाँचवीं पाट को सुशोभित करनेवाले महान आचार्य बने। गुरु यशोभद्रसूरिजी अपनी परम्परा शिष्य भद्रबाहुस्वामी को सोंपकर अंत में शत्रुजय गिरि की यात्रा करके कालधर्म प्राप्तकर स्वर्ग में गए । "श्रुतज्ञान के उपासक इन मुनि की वंदना द्वारा हम भी ज्ञान और संयम के मार्ग पर आगे बढ़ें, ऐसी उनसे प्रार्थना करते हैं।" गाथा : जंबुपहु वंकचूलो, गयसुकुमालो अवंतिसुकुमालो । धन्नो इलाइपुत्तो, चिलाइपुत्तो अ बाहुमुणी ।।४।। संस्कृत छाया : जंबूप्रभुः वङ्कचूल: गजसुकुमाल: अवन्तिसुकुमालः । धन्यः इलाचीपुत्रः, चिलातीपुत्रः च बाहुमुनिः ।।४।। शब्दार्थ : जंबूस्वामी, वंकचूल, गजसुकुमाल, अवंतिसुकुमाल, धन्नाशेठ, इलाचीपुत्र, चिलातीपुत्र, युगबाहुमुनि ।।४।।
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy