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________________ भरहेसर-बाहुबली सज्झाय १९७ ऐसा अद्भुत दृश्य देखकर दशार्णभद्र तो दंग रह गए। गर्व खत्म हो गया, मान को तोड़ने की इच्छा जागी। जिस ऋद्धि का मान था उसका तत्काल त्याग किया... प्रभु के पास दीक्षा लेकर प्रभु के परम भक्त बने; इन्द्र भी चकित होकर भक्तिभाव से झुक गए। उन्होंने भी सरल भाव से स्वीकार किया कि दशार्णभद्र राजा ने दीक्षा लेकर प्रभु की आज्ञा को शिरोधार्य करके जो उत्कृष्ट भक्ति की, वैसी भक्ति करने में वे असमर्थ थे । अनुक्रम से दशार्णभद्रामुनि कर्मक्षय करके मोक्ष में “मानादि कषायों को जानकर उसे तोड़ने की तीव्र तमन्नावाले ऐसे महामुनियों के चरणों में मस्तक झुकाकर कषाय का उन्मूलन करने की शक्ति के लिए उनसे प्रार्थना करते हैं।" २७. पसन्नचंदो अ - प्रसन्नचंद्र राजर्षि 'हे प्रभु ! आतापना लेते हुए काउस्सग्ग ध्यान में लीन प्रसन्नचंद्र राजर्षि यदि अभी मृत्यु को प्राप्त करें, तो वे किस गति को प्राप्त करेंगे ?' यह प्रश्न था महाराजा श्रेणिक का । प्रभु वीर ने जवाब दिया, 'सातवीं नरक में उत्पन्न होंगे...' जवाब सुनकर महाराज खिन्न हो गए कि इतनी सुंदर आराधना के बावजूद मुनि नरक में जाएँगे ! इस बात का रहस्य जो प्राप्त कर सकेगा उसे साधनाजीवन का रहस्य प्राप्त हो जाएगा। बाह्य आराधना चाहे जितनी भी प्रबल हो परन्तु यदि मन विषय-कषाय से कलुषित हो तो आराधना निष्फल हो जाती है। इसलिए कहा गया है - "मनः एव मनुष्याणां कारणं बंधमोक्षयोः..."
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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