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________________ १९६ सूत्र संवेदना-५ २६. दसन्नभद्दो - दशार्णभद्र राजा । दशार्णभद्र राजा को प्रभु वीर के प्रति तीव्र भक्ति थी। एक बार वीर प्रभु दशार्णपुर पधार रहे हैं, ऐसे समाचार मिलते ही इस भक्त राजा का हृदय अत्यंत पुलकित हो उठा। समाचार देनेवाले को प्रीतिदान दिया। प्रभु की दिशा के सन्मुख खड़े रहकर स्तुति की। मनोमन प्रभु का अद्वितीय सामैया करने का निर्णय किया। विचार तो उत्तम था, परन्तु उसमें मान और मद का विष घुलने में देर नहीं लगी । १८००० हाथी, ४०,००,००० पैदल, १६००० ध्वजा, ५०० मेघाडंबर छत्र, डोली में बैठी ५०० रूपवती रानियाँ, आभूषणों से सज्जित सामंत, मंत्री आदि ऋद्धि सहित सामैया चढ़ाया। रास्ते पर सुगंधित जल का छिड़काव करवाया, सुंदर पुष्प बिछाए, रत्नमय दर्पणों से सुशोभित सुवर्ण के स्तंभ खड़े करवाकर बंधवाए, तोरण बंधवाए... सामैये का ठाठ देखकर राजा खुद सोचने लगा कि, 'मुझे धन्य है ! आज तक कोई ऐसी ऋद्धिपूर्वक प्रभु का स्वागत करने नहीं गया होगा ।' निर्मोही का भक्त मोह के बंधन में बंध गया, पुण्य के योग से सौधर्म इन्द्र ने अवधिज्ञान से उनके गर्व को जान लिया । प्रतिबोधित करने के लिए वे भी ऋद्धिपूर्वक प्रभु के स्वागत के लिए आए। उन्होंने ६४००० हाथी बनाए, एक-एक हाथी के ५१२ मुख बनाए, एक-एक मुख पर आठ दंतशूल किए, एक-एक दंतशूल के ऊपर आठ-आठ तालाब बनाए, उसमें आठ-आठ कमल, हर एक कमल पर एक-एक कर्णिका, प्रत्येक कर्णिका के ऊपर सिंहासन सजाकर उसके ऊपर स्वयं आठ-आठ अग्रमहिषियों के साथ बैठे प्रत्येक कमल के लाखलाख पत्ते थे जिनपर बत्तीस देवियाँ, बत्तीस प्रकार के नाटकों का नृत्य कर रही थीं।
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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