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________________ १९२ सूत्र संवेदना-५ राजा को अपनी रानी से ज़्यादा सुदर्शन सेठ के चरित्र पर विश्वास था। उन्होंने सेठ से बार-बार वास्तविकता बताने को कहा, परन्तु श्री सुदर्शन मौन रहे। राजा ने सेठ को फाँसी की सज़ा सुनाई। पुनः पूछताछ की, परन्तु सेठ तो अडिग होकर मौन रहे। सुदर्शन सेठ को अपने प्राण की चिन्ता नहीं थी; अन्य के दोष बोलने, अन्य को दोषी ठहराने और अपने कारण किसी पंचेन्द्रिय जीव की हिंसा उन्हें बिल्कुल कबूल नहीं थी... उत्तम पुरुष दुसरों का नुकसान एवं द्रव्य और भाव प्राण की हानि देखकर कभी अपनी निर्दोषता साबित करने का प्रयास ही नहीं करते। खुद मिट जाते हैं पर दूसरों पर आँच भी नहीं आने देते। ___ शूली पर चढ़ाने से पहले सेठ के मुँह पर कालिख पोतकर उन्हें गधे पर बिठाकर गाँव में घूमाया गया। गाँव के लोग भी सेठ ऐसा अकार्य करें, वह स्वीकार करने को तैयार नहीं थे। अनिच्छा से राजा ने भी सुदर्शन सेठ को शूली के मंच पर चढ़ाया। इस तरफ उनकी पत्नी मनोरमा को समाचार मिले । उसे अपने पति के सत् चरित्र के ऊपर अखंड विश्वास था । इसलिए उसने जब तक पति के ऊपर लगा हुआ कलंक दूर न हो, तब तक काउस्सग्ग में स्थिर रहूँगी, ऐसी प्रतिज्ञा की। उसकी आराधना, सेठ की निर्दोषता, प्रतिज्ञा पालन में दृढ़ता और सच्चाई के बल पर शूली सिंहासन में परिवर्तित हो गया। अंत में दंपती ने दीक्षा ली और मोक्ष प्राप्त किया। "श्रावक जीवन में भी परपीड़ा के परिहार की भावना से स्व का बलिदान देकर अन्य को लेश मात्र भी हानि न पहुँचे तथा व्रतपालन में अडिग रहने की सुदर्शन सेठ की श्रेष्ठ मनोवृत्ति को अंतःकरणपूर्वक वंदन करके, वैसे गुण हमें भी प्राप्त हों ऐसी प्रार्थना करते हैं ।"
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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