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भरहेसर-बाहुबली सज्झाय
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चरणों में मस्तक झुकाकर याचना करता हूँ कि उनके जैसा वैराग्य और वीतराग का संग मुझे भी मिले। साथ ही सेचनक हाथी जैसी कृतज्ञता मेरे में भी विकसित हो ।' २१. सुदंसण - श्री सुदर्शन सेठ : शील, सदाचार, सज्जनता और दया की मूर्ति याने श्री सुदर्शन सेठ। वे बारह व्रतधारी श्रावक थे। उनके रूप से मोहित होकर एक बार कपिला दासी ने अपनी कामेच्छा पूरी करने के लिए उनके पास भोग की माँग की। तब स्वदारा संतोषव्रतधारी श्री सुदर्शन सेठ कुशलतापूर्वक 'मैं नपुंसक हूँ' ऐसा कहकर, उसकी मोहजाल से बच गये। वास्तव में अपनी स्त्री के अलावा परस्त्री के लिए वे नपुंसक ही थे अर्थात् उन्होंने झूठ नहीं बोला था।
एक बार कपिला दासी अभया रानी के साथ उद्यान में गई थी । वहाँ सेठ की पत्नी मनोरमा को छः पुत्रों के साथ देखकर उसे समझ में आ गया कि सेठ ने उससे छल किया था। बदला लेने की तीव्र भावना से उसने अभया रानी के आगे श्री सुदर्शन सेठ के रूपादि का कामोत्तेजक वर्णन किया। अभया को भी यह सुनकर सेठ को वश करने की अभिलाषा प्रगट हुई। अवसर का लाभ उठाकर अभया ने पौषध में काउस्सग्ग ध्यान में स्थित सेठ को दासियों द्वारा उठवा लिया
और काम-भोग की प्रार्थना करके उनको चलायमान करने के बहुत प्रयत्न किये; परन्तु सत्त्वशाली सेठ शुभध्यान में स्थिर रहे। जब कोई प्रतिभाव न मिला, तब निष्फल अभया ने उनके ऊपर शीलभंग का आरोप लगाया।