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सूत्र संवेदना-५ थे। प्रसन्न हुए पिता ने अपने सेचनक हाथी और देवताई कुंडल इन दोनों भाइयों को उपहार में दिए। उनके बड़े भाई कोणिक ने अपनी पत्नी के आग्रह से इस पट्ट-हस्ति तथा देवताई कुंडलों को पाने के लिए उनके साथ युद्ध करने का विचार किया । बड़े भाई के साथ युद्ध न करना पड़े, इसलिए दोनों भाई अपने मामा, चेड़ा राजा के राज्य में पहुँच गए। वहाँ कोणिक ने मामा के साथ भी युद्ध किया। सचमुच! जब इच्छा प्रबल बने और गर्व मनुष्य के मन पर सवार हो जाता है, तब विवेक अवश्य नष्ट हो जाता है।
सेचनक हाथी अपने स्वामी के प्रति अत्यंत वफ़ादार था। उसके सहारे इन दोनों भाइयों ने कोणिक के सैन्य को पराजित किया। कोणिक ने अंगारे से भरी एक खाई तैयार की। सेचनक हाथी को इस बात का पता चल गया, इसलिए वह दोनों भाइयों के प्राण बचाने के लिए उनको दूर फेंककर स्वयं खाई में गिर पड़ा। अपने स्वामी के जीवन की रक्षा के लिए अपना जीवन न्योछावर करनेवाले विनयी, वफादार और प्रिय हाथी की मृत्यु से दोनों भाईयों को वैराग्य हुआ। वैराग्य की दृढ़ता को देख शासन देवता ने दोनों भाइयों को युद्धभूमि से उठाकर प्रभु वीर के पास रख दिया। प्रभु के पास दीक्षा लेकर दोनों भाई सर्वार्थसिद्ध विमान में देव हुए। एक पशु में भी कैसी गुणसंपत्ति! कृतज्ञता और वफ़ादारी के कारण अपने प्राण की आहुति दे दी; परन्तु स्वामिभक्ति में कमी नहीं आने दी। कैसे होंगे वे पुण्यशाली पुरुष जिनको कृतज्ञता आदि उच्च गुणवाले मनुष्य से भी अधिक प्राणी रूप सेवक मिला। धन्य है ऐसे महात्मा जो वैर के स्थान पर वैराग्य को प्रकट कर गुणसम्पत्ति के स्वामी बनें ।
'जब अंतर में सच्चा वैराग्य जगा, तब देवों ने जिनको वीतराग प्रभु के पास पहुँचाया, उन महात्माओं के