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भरहेसर - बाहुबली सज्झाय
१९८९
करकंडु को एक रूपवान और बलवान बैल अतिप्रिय था । कालक्रमानुसार इसी बैल को वृद्धावस्था से क्षीण, निर्बल और जर्जरित देखकर उनको संसार की अनित्यता का बोध हुआ 'संसार में सब अनित्य है; यह देह, परिवार, संबंध, रूप, राज्य, धन, वैभव आदि सब नश्वर है ।' इस भावना से नश्वर शरीर के प्रति राग छूट गया और अविनश्वर आत्मा के प्रति रुचि हुई । वैराग्य की धारा की वृद्धि होने से वे प्रत्येकबुद्ध बने और अनुक्रम से दीक्षा लेकर मोक्ष में गए।
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“धन्य है करकंडु मुनि को, जो छोटे से निमित्त को पाकर अविनाशी आत्मा के अनुरागी बने। उनके चरणों में वंदना करके हम भी आत्मानुरागी बनने का यत्न करें ।”
गाथा :
हल्ल विहल्ल सुदंसण, साल - महासाल - सालिभद्दो अ । भहो दसनभहो पसन्नचंदो अ जसभद्दो || ३ |
संस्कृत छाया :
हल्ल: विहल्लः सुदर्शनः, शाल: महाशालः शालिभद्रः च भद्रः दशार्णभद्रः प्रसन्नचन्द्रः च यशोभद्रः ।।३।।
गाथार्थ :
हल्लकुमार और विहल्लकुमार, सुदर्शन शेठ, शालमुनि, महाशालमुनि, शालिभद्रमुनि, श्री भद्रबाहुस्वामी, दशार्णभद्रराजा, प्रसन्नचन्द्रराजर्षि तथा यशोभद्रसूरिजी ।
विशेषार्थ :
१९-२०. हल्ल - विहल्ल - श्री हल्लकुमार तथा श्री विहल्लकुमार ये दोनों महात्मा महाराज श्रेणिक और महारानी चेलणा के कुंवर