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आयरिय-उवज्झाए सूत्र
उपाध्याय भगवंत के प्रति नतमस्तक होकर करुणाई हृदय से माफी मांगनी चाहिए । सिसे - शिष्य के विषय में।
शरण में आए शिष्य का हित करने की जिम्मेदारी गुरु भगवंत की है। इसी कारण शिष्य का हित करने के लिए गुरु भगवंत उसको बार-बार हितशिक्षा देते हैं। संयम जीवन में स्खलना होने पर डाँटते भी हैं। तब योग्य शिष्य अपना परम सौभाग्य मानते हुए हाथ जोड़कर, सिर झुकाकर उसका सहर्ष स्वीकार करते हैं, परन्तु कषाय के अधीन होकर यदि कोई अयोग्य शिष्य, गुरु की बातों का विनयपूर्वक स्वीकार न करे, सामने बोले या अयोग्य व्यवहार करे, तो कर्मस्थिति का विचार करते हुए गुरु भगवंत को समता रखनी चाहिए । यदि कभी क्षमा के बदले वैसे शिष्य के ऊपर गुरु को द्वेषादि भाव हो जाएँ, तो वह कषाय गुरु भगवंत के लिए भी कर्मबंध का कारण बनता है । इसलिए यह पद बोलते समय आत्मशुद्धि के इच्छुक गुरु भगवंत भी शिष्य के प्रति हितबुद्धि से हुए अपने अल्प भी कषाय को याद करके क्षमा माँगते हैं ।
साहम्मिए-साधर्मिक के विषय में । समान धर्म का आचरण करनेवाले श्रावक-श्राविका के लिए अन्य श्रावक-श्राविका और साधु-साध्वी के लिए अन्य साधु-साध्वीजी भगवंत अपने साधर्मिक कहलाते हैं । साधर्मिकों की उत्तम भोजन आदि से भक्ति, श्रेष्ठ वस्त्रादि से सम्मान और अवसर आने पर उनके गुणों की प्रशंसा करना चूकना नहीं चाहिए। इसके अतिरिक्त साथ में धर्मक्रिया करनेवाले अन्य साधर्मिक की कोई भूल दिखे या उनका व्यवहार अयोग्य दिखें, तो उनको तारने की भावना से सौहायपूर्वक उनकी भूल बतानी चाहिए; उनके प्रति घृणा, अरुचि या द्वेष तो कभी भी नहीं करना चाहिए ।