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________________ १८६ सूत्र संवेदना-५ मुनि को अन्य स्थान पर चले जाने को कहा। परन्तु अपने शरीर के प्रति निरपेक्ष सुकोशल मुनि वहीं मरणांत उपसर्ग का सामना करने के लिए तैयार हो गए। शेरनी उनके शरीर को फाड़ने लगी । यहाँ शुक्लध्यान पर आरूढ़ महात्मा ने भी कर्मदहन के लिए जेहमत उठाई । योगानुयोग दोनों की सफलता हुई। सुकोशलजी का सदा के लिए शरीर का संग छूट गया, कर्म के बंधन से छूटकर वे परमानंद को पाने के लिए मोक्ष में पहुंच गए। “मरणांत उपसर्ग में भी समता रखनेवाले ऐसे महामुनि के चरणों में मस्तक झुकाकर हम श्रेष्ठ समता के स्वामी बनने का बल माँगे ।” १६. पुंडरीओ - पुंडरीकमुनि पुंडरीक-कंडरीक दो भाई थे। एक ही दिन संयम की आराधना करके एक सर्वार्थसिद्ध विमान में गए, जब कि दूसरे संयम की विराधना करके सातवीं नरक में पहुंच गए। अनुकूलता का राग, निमित्त का असर और कर्म की विचित्रता आदि से जीव कैसी गति का सृजन कर सकता है, यह इन दोनों भाइयों के जीवन से सीखना होगा और हमें अपने जीवन में सावधान रहना होगा। श्री पुंडरीक को पिता के साथ दीक्षा लेने की भावना होने के बावजूद छोटे भाई कंडरीक की तीव्र भावना जानकर, उन्होंने उसे दीक्षा की सहर्ष अनुमति दे दी और स्वयं अनासक्त भाव से राज्य का पालन करने लगे। कैसी उदारता ! कैसा औचित्य ! । हज़ारों वर्षों के संयम पालन के बाद एक बार कंडरीक मुनि का शरीर रोगग्रस्त हो गया । तब भक्ति से भरे पुंडरीक राजा ने योग्य उपचार करने के लिए उनको अपनी वाहनशाला में ठहरने का
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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