________________
१८४
सूत्र
संवेदना - ५
में वह ऐसा रंग गया कि अपने माता-पिता, पत्नी सभी को भूल गया । भोग का यही विनाशकारी प्रभाव है !
कालक्रमानुसार उसके माता-पिता की मृत्यु हुई, फिर भी कयवन्ना ने वेश्या का साथ नहीं छोड़ा। उनकी स्त्री एक आर्यपत्नी की तरह पति की खुशी के लिए वेश्या के घर रोज धन भेजती रही । कालक्रम से धन-दौलत सब खत्म हो गए । वेश्या को धन मिलना बंद हो गया, जिसके कारण उसने कयवन्ना को अपने घर से निकाल दिया ।
वर्षों बाद घर आए कयवन्ना सेठ का उसकी पत्नी ने आदरपूर्वक स्वागत किया, सेवा-भक्ति, स्नान, भोजन करवाया। यह देख के सेठ को अपार दुःख हुआ । खूब पछतावा हुआ। ऐसे समय में भी आर्य पत्नी ने सुमधुर शब्दों से उन्हें आश्वासन दिया, बचा हुआ थोड़ा-बहुत धन दिया और परदेश जाकर व्यापार करने की सलाह दी। कैसी विशालता !!
समय के करवट बदलते ही कयवन्ना सेठ का भाग्य जागा और वे चार श्रेष्ठी पुत्रवधुओं के पति बने, जिनसे उन्हें चार पुत्र हुए। पुनः राजगृही में आने पर अभयकुमार के साथ उनकी मित्रता हुई, श्रेणिक राजा की पुत्री मनोरमा के साथ उनका विवाह हुआ, श्रेणिकराजा का आधा राज्य मिला और सुखभोगते हुए दिन बीतने लगे। इस प्रकार कयवन्ना सेठ का सौभाग्य बढ़ता ही गया ।
एक बार उनको प्रभुवीर से अपने पूर्वभव का ज्ञान हुआ। मुनि को तीन बार खीर थोड़ी-थोड़ी परोसने से इस भव में सुख तो मिला, परन्तु तीन टुकडो में मिला; यह सुनते ही कयवन्ना सेठ को वैराग्य हुआ । दीक्षा लेकर स्वर्गवासी हुए। वहाँ से च्युत होकर मोक्ष में जाएँगे ।