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भरहेसर-बाहुबली सज्झाय
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१३. सिंहगिरि - आचार्य श्री सिंहगिरिजी प्रभुवीर की बारहवीं पाट परम्परा को सुशोभित करनेवाले इन आचार्य भगवंत की विचक्षणता के कारण ही जैनशासन को वज्रस्वामी जैसे प्रभावक मिले। सामान्यतया जैन साधु सचित्त के त्यागी होते हैं, फिर भी इन महापुरुष ने एक बार शिष्य से कहा कि सचित्त-अचित्त जो मिले उसे ले आना। ज्ञान से उन्होंने जाना था कि तब वज्रस्वामी का सुयोग होगा। वज्रस्वामी की दीक्षा के बाद उन्होंने कुशलता से सभी साधुओं को उनके (वज्रस्वामी) पास वाचना लेने के लिए तत्पर किया। वज्रस्वामी को भी उन्होंने भद्रगुप्तसूरिजी के पास पढ़ने के लिए भेजा था।
"हे गुरुदेव ! आपकी योगक्षेम करने की कुशलता के कारण ही आज वीरप्रभु का ज्ञानवारसा टिक सका है। हमें भी आप जैसे गुरु का योग मिले और हमारा योगक्षेम भी कुशलता से हो, ऐसी प्रार्थना सहित
नमस्कार करते हैं।" १४. कयवत्रो अ - और श्री कयवन्ना शेठ (कृतपुण्यक सेठ) मोहांध आदमी अपने मोह को सफल बनाने के लिए क्या-क्या कर सकता है, यह श्री कयवन्ना सेठ के जीवनवृत्तांत से समझा जा सकता है।
साधुओं के संग से कयवन्ना युवावस्था में भी परम वैरागी था। मोहाधीन माता-पिता ने अति गुणसंपन्न धन्या नाम की श्रेष्ठी कन्या के साथ उसका विवाह करवाया, फिर भी वह अनासक्त रहा। इसलिए माता-पिता ने उसे जुआरी और वेश्या के अधीन बनाया। वेश्या के राग