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सूत्र संवेदना - ५
सकल संघ की आँखों के तारे बने हुए, खिलखिलाहट करते अपने बालक को वापस पाने के लिए माता ने राजदरबार में निवेदन किया । तब वज्रकुमार की उम्र मात्र ३, वर्ष की थी, परन्तु उनकी दीर्घदृष्टि किसी प्रौढ़ व्यक्ति को भी शरमा दें, ऐसी थी । क्या करने से मेरा हित होगा ? क्या करने से माता का भविष्य सुधरेगा ? क्या करने से संघ की उन्नति होगी ? इसका गहरा विचार कर, राजदरबार में श्री संघ के समक्ष माता ने दिखाई हुई सभी भोगसामग्री को ठुकराकर, गुरु के हाथ से रजोहरण लेकर मात्र ३ / वर्ष के वज्रकुमार ने नाचते हुए
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बालमुनि ने विधिवत् अध्ययन शुरू किया। उनकी प्रतिभा को देखकर गुरु ने उनको वाचनाचार्य बनाकर उत्तरोत्तर आचार्यपद प्रदान किया। देवताओं ने आकाशगामिनी विद्या और वैक्रिय लब्धि देकर उनकी भक्ति की । भयंकर दुष्काल में पूरे संघ को वे आकाशगामी पट से सुकाल क्षेत्र में ले गए। बौद्ध राजा को प्रतिबोधित करने के लिए श्रीदेवी के पास से कमल और लाखों पुष्प लाकर शासनप्रभावना की । उनसे ही शादी करने का निश्चय कर बैठी रुक्मिणी के राग को उन्होंने वैराग्य में बदल कर, उसे भी श्रमणी बना दी। ये लब्धि सम्पन्न आचार्य इस काल के अंतिम दस पूर्वधर थे ।
“धन्य है उनके विवेक से झलकते वैराग्य को... प्रातः काल उनकी वंदना करके ऐसा प्रबल वैराग्य हममें भी प्रगट हो, ऐसी प्रार्थना करते हैं ।”
१२. नंदिसेण - श्री नंदिषेण मुनि
" हे वत्स ! तुम्हारे भोगावली कर्म अभी बाकी हैं। इसलिए तुम दीक्षा के लिए जल्दबाज़ी मत करो !"