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________________ १७८ सूत्र संवेदना-५ उनकी रुचि का विषय था। सदा अध्यात्म की मस्ती में डूबे रहनेवाले, वे एकबार कला के प्रेम से संगीत की कला में निपुण ऐसी कोशा वेश्या की तरफ आकर्षित हुए और उसके राग में रंग गए। १२ वर्ष तक भोग में वे ऐसे डूबे रहे कि पिता के अंतिम दर्शन भी न पा सके। सचमुच विषयों की आसक्ति साधक को क्षणमात्र में उन्नति के शिखर से पतन की खाई में पटक देती है! पिता की मृत्यु के बाद नंद राजा ने स्थूलभद्र को मंत्री बनाने के लिए आमंत्रण भेजा। वहाँ पूर्व के सुसंस्कार पुनः जागृत हो गए और वैराग्य प्राप्त कर वे चिंतन में डूब गए। बाह्य राज्य की देखभाल करने से उनको अंतरंग राज्य की देखभाल करना ज़्यादा उपयोगी लगा । स्वयं संयम के साज सजकर उन्होंने आचार्य संभूतिविजय के पास दीक्षा ग्रहण की। संयम के योग और शास्त्राभ्यास में लीन होकर उन्होंने विषयों के कुसंस्कारों को चूर चूर कर दिया। एक बार गुरु की आज्ञा लेकर वे कोशा के घर चातुर्मास करने गए। पूर्व के प्रेमी को रिझाने के लिए कोशा ने उनको चित्रशाला में उतारा। कोशा ने चार महिने षड् रस भोजन, गीत, नृत्य, कामुक चेष्टाएँ, शृंगार आदि द्वारा उनको लुभाने के अनेक प्रयास किए... परन्तु तत्त्वदृष्टि से कोशा को देखनेवाले स्थूलभद्रजी को उसमें पुद्गल के पर्याय ही दिखते थे और कोशा की आत्मा अपने जैसी ही दिखती थी। इसलिए इन कामोत्तेजक प्रयोगों से महात्मा की रूहें भी नहीं हिलीं। रागादि का आंशिक विकार भी उन्हें स्पर्श नहीं हुआ। अरे! इस कामविजेता ने तो कामसाम्राज्ञी कोशा को भी कामाग्नि से मुक्ति दिलाकर, वैरागी और सच्ची श्राविका बना दिया। इस प्रकार मोहराजा के किल्ले में रहकर ही मोहराजा को परास्त करनेवाले इस महात्मा का नाम ८४ चौबीशी तक अमर रहेगा। सूत्र से
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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