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भरहेसर-बाहुबली सज्झाय
१७७ एक बार श्री मेतार्य मुनि एक सुनहार के घर गोचरी गए। वह श्रेणिक महाराजा की अक्षत पूजा के लिए सोने के चावल बना रहा था सुनहार जब भिक्षा देने के लिए उठा, तब क्रौंच पक्षी ने आकर सोने के चावल को जौ के दाने मानकर चुग लिए। सुनहार को तो मेतारज मुनि के ऊपर ही शंका हुई। उसने बलपूर्वक मुनि से पूछताछ शुरू की, फिर भी पक्षी के प्रति दया के कारण महात्मा मौन रहे । मुनि के मौन से सुनहार की शंका और दृढ़ हो गई । उनसे चावल पाने के लिए सुनहार ने गीले चमड़े की वाघर (चमड़े की सींकडी, दोरी या पट्टी) को मुनि के सिर पर बाँधकर उनको धूप में खड़ा कर दिया।
मुनि महाराज सत्त्व एवं धैर्य की मूर्ति थे। चाहते तो आसानी से कह सकते थे कि चावल क्रौंच पक्षी ले गया है, परन्तु उनको अपनी मौत मंजूर थी, लेकिन अहितकारी सत्य कहने से अन्य की प्राणहानि उन्हें बिल्कुल ही मंजूर न थी। इसलिए मौन रहे। गर्मी से जैसे-जैसे चमड़ा सूखता गया, वैसे-वैसे उनके सिर की नसें टूटने लगीं, खोपड़ी फूटने लगी, आँखों के गोलक बाहर आ गए। इस असह्य वेदना को मुनि समभाव से सहन करते रहे। न वे क्रोधित हुए, न उनके लिए शरीर की ममता अवरोधक बनी। परहित की चिंता से समतानिष्ठ मुनि अंतकृत् केवली होकर मोक्ष में पहुँचे ।
“हे मुनिवर ! आप सचमुच अभयदाता बनें। करुणा के भंडार रूप आपको अंतःकरणपूर्वक वंदन हो... नमन हो ।” १०. थूलभद्दो - श्री स्थूलभद्रजी
राग की पराकाष्ठा से जो वैराग्य की पराकाष्ठा तक पहुँचे, ऐसे स्थूलभद्रजी शकडाल मंत्री के ज्येष्ठ पुत्र थे। धर्मशास्त्र और कला