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सूत्र संवेदना - ५
गाथा :
मेअज्ज थूलभद्दो, वयररिसी नंदिसेण सिंहगिरी । कयवन्नो अ सुकोसल, पुंडरिओ केसि करकंडू || २ ||
अन्यव सहित संस्कृत छाया :
मेतार्यः
स्थूलभद्रः
वज्रर्षिः नन्दिषेणः सिंहगिरिः ।
कृतपुण्यः च सुकोशलः, पुण्डरीकः केशी करकण्डूः ।।२।। गाथार्थ :
मेतारज मुनि तथा स्थूलभद्रजी, वज्रस्वामी, नंदिषेणजी, सिंहगिरिजी, कृतपुण्यकुमार, सुकोशलमुनि पुंडरीककुमार, केशीगणधर करकंडुमुनि
।।२।।
विशेषार्थ :
९. मेअज्ज श्री मेतार्यमुनि
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,
श्री मेतार्य मुनि पूर्वभव में पुरोहित के पुत्र थे। वे अपने मित्र राजपुत्र के साथ साधुओं की छेड़खानी करके आनंदित होते थे। उन्हें पाठ पढ़ाने के लिए मुनि भगवंत ने उनको सज़ा दी और उनमें योग्यता दिखने पर शर्त रखी कि यदि दीक्षा लोगे तो ही छोडूंगा। दोनों मित्रों ने संयम जीवन स्वीकार किया और उसका अच्छी तरह पालन भी किया; परन्तु पुरोहितपुत्र को स्नान के बिना संयम जीवन के प्रति कुछ दुर्भाव हुआ। जिसके परिणाम स्वरूप उसका जन्म चांडाल कुल में हुआ। इसके बावजूद पुण्ययोग के कारण वे एक श्रीमंत सेठ के वहाँ पले बढ़े। पूर्वभव के मित्र देव की सहायता से अद्भुत कार्यों को साधते हुए वे श्रेणिकराजा के जमाई बने । मित्र देव के ३५ वर्ष के प्रयास के बाद प्रतिबोध प्राप्त कर उन्होंने दीक्षा अंगीकार की ।