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________________ १७५ भरहेसर-बाहुबली सज्झाय "हे बालमुनि ! आप को धन्य है ! आपकी सरलता और पाप भीरुता को मैं मस्तक झुकाकर नमन करता हूँ।” ८. नागदत्तो अ - और श्री नागदत्त : व्रत की दृढ़ता और सत्त्व नागदत्त के नस-नस में इस प्रकार भरा हुआ था कि अपने इस एक गुण के बल पर वे सभी दोषों का सदा के लिए क्षय करके सर्वगुणसम्पन्न बन सके। यज्ञदत्त सेठ और धनश्री के पुत्र नागदत्त सत्यप्रिय और व्रतपालन में धीर गम्भीर थे। पराई वस्तु न लेने का उनका नियम था। एक बार अष्टमी के दिन वे जंगल में कायोत्सर्ग में लीन थे, इतने में इर्ष्यालु कोतवाल ने राजा के गिरे हुए कुंडल को उनकी चादर के एक कोने में बाँधकर, उनके ऊपर चोरी का आरोप लगाया और राजा के समक्ष हाज़िर किया। राजा ने फाँसी की सज़ा दी। नागदत्त के सत्य व्रत के प्रभाव से शूली का सिंहासन हो गया। शासन देवता ने प्रगट होकर देववाणी की, 'ये उत्तम पुरुष हैं, प्राण जाए तो भी पराई वस्तु नहीं छूते।' सच्चाई को जानकर चारों दिशाओं में उनका यश फैल गया। नागदत्त ने वैराग्य धारण कर दीक्षा ली। सर्व कर्म का क्षय करके केवलज्ञान प्राप्त किया। “धन्य है इस श्रावक की निःस्पृहता और धीरता को ! उनके चरणों में मस्तक झुकाकर उनके जैसे सत्त्व और व्रतपालन में दृढ़ता की याचना करें !"
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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