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भरहेसर - बाहुबली सज्झाय
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छः महीनों तक प्रतिदिन मुनि गोचरी के लिए घूमते रहे। एक दिन पिता कृष्णमहाराजा ने उनको देखा । भावविभोर होकर उन्होंने हाथी से उतरकर पुत्र मुनि को वंदन किया। यह देखकर एक श्रेष्ठी ने मुनि को लड्डू अर्पित किया ।
मुनि ने मोदक स्वीकार कर प्रभु को बताया और बालभाव से पूछा, 'क्या मेरा कर्म अब तूट गया है?' प्रभु ने कहा कि, 'आपको तो कृष्ण की लब्धि से भिक्षा मिली है ।' यह सुनकर छः महीने के उपवास होने के बावजूद समता के भंडार ढंढण मुनि ज़रा भी खेद किए बिना सोचने लगे कि परलब्धि से प्राप्त आहार मुझे नहीं लेना है । इसीलिए छः महीने घूमने के बाद मिली भिक्षा को भी परठने के लिए वे कुंभारशाला में गए।
मुनि मोदक को चूरते गए और पूर्वभव के दुष्कृत्यों की अंतर से निंदा करते गए। मोदक के चूर्ण के साथ उनके कर्मों का भी चूर्ण हो गया और वहीं उन्हें केवलज्ञान उत्पन्न हुआ।
“कर्मबंधन तोड़ने के लिए कटिबद्ध ढंढणमुनि के पुरुषार्थ को कोटि-कोटि वंदन करके इच्छा करता हूँ कि मैं भी उनकी तरह अदीनभाव से साधना करूँ ।" ५. सिरिओ - श्री श्रीयक
'मेरा यह खड्ग, मेरे राजा का जिसने द्रोह किया है, उसका मस्तक उडा देगा', ऐसा कहकर श्रीयक ने अपने पिता शकडाल मंत्री का मस्तक उडा दिया ।
हृदय को कंपानेवाले इस कृत्य के पीछे किसी को मारने की नहीं बल्कि बचाने की भावना थी। देखने में भले यह पितृहत्या थी, परन्तु वास्तव में पितृभक्ति थी ।