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भरहेसर-बाहुबली सज्झाय
१६७ और पराए लगने लगे। अनित्य और अन्यत्व भावना को भावित करतेकरते उनके वैराग्य की धारा अत्यंत तीव्र तीव्रतर बनकर अंत में केवलज्ञान में फलित हुई । पूर्व भव में की गई उत्कृष्ट चारित्र और वैयावच्च की साधना और इस भव में सतत वैराग्य प्राप्त करने के लिए किए हुए धर्मश्रवण का यह उत्तम फल था। केवली के रूप में अनेक भव्य जीवों का उद्धार करके अंत में उन्होंने अष्टापद पर निर्वाण प्राप्त किया।
'धन्य है ये महापुरुष, जिन्होंने चक्रवर्ती की ऋद्धि के बीच भी विरक्ति टिकाए रखी। उनके चरणों में कोटि
कोटि वंदना करके, ऐसी विरक्ति की प्रार्थना करें ।' २. बाहुबली - श्री बाहुबलीजी
भूल तो सबसे होती है, परन्तु अपनी भूल को समझकर उसे सुधारने की अनुपम क्षमता कुछ विरल लोगों में ही होती है; भरत महाराजा के छोटे भाई बाहुबली उनमें से एक थे।
बाहुबली को जीतने के लिए भरतेश्वर ने बाहुबलीजी के साथ भीषण युद्ध किया। अंत में अनेक जीवों का संहार रोकने के लिए मात्र दो भाइयों में परस्पर दृष्टियुद्ध, वाग्युद्ध आदि हुआ। पूर्वभव में की हुई वैयावच्च के प्रभाव से प्राप्त अप्रतिम बाहुबल के धारक बाहुबली के सामने चक्रवर्ती हार गए। क्रोध में आकर उन्होंने भाई के ऊपर चक्ररत्न छोड़ा लेकिन चक्ररत्न एक गोत्रीय का नाश नहीं करता, इसलिए चक्र बाहुबलीजी की प्रदक्षिणा कर वापस लौट आया। अंत में क्रोधित भरतेश्वर ने भाई के ऊपर मुष्टि का प्रहार किया जिससे बाहुबलीजी कमर तक जमीन में फंस गये। क्रोध, मान, लोभ आदि के अधीन बनकर बाहुबलीजी ने भी ज़ोर से प्रहार करने के लिए हाथ उठाया... परन्तु तुरन्त ही विवेक प्रगट हुआ, कषायों की अनर्थकारिता