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सूत्र संवेदना-५ समझ में आयी, नश्वर राज्य का लोभ मिट गया और भाई के प्रति क्रोध शांत हो गया। इस महत्त्वपूर्ण क्षण में हुए आंतरिक परिवर्तन ने उनको अध्यात्म के उच्च स्थान पर स्थापित कर दिया । उठाई हुई मुष्टि से उन्होंने वहीं उसी क्षण अपने मस्तक के केशों का लोचन किया। द्रव्य समरांगण भाव समरांगण में बदल गया। अंतरंग शत्रुओं को जीतने बाह्य शत्रुओं को छोड़कर बाहुबलीजी ने संयम संग्राम का स्वीकार किया।
इतना कुछ जीतने के बावजूद ऐसे महायोद्धा भी मान से हार गए। केवलज्ञानी छोटे भाइयों को वंदन न करना पड़े, इसलिए - 'केवलज्ञान प्राप्त करने के बाद में उनके पास जाऊँगा ।' - ऐसी भावना से १२ महीनों तक परीषहों को सहन करते हुए वहीं काउस्सग्ग में स्थिर रहे। करुणापूर्ण प्रभु ने उनको प्रतिबोधित करने के लिए बहनों को वंदन के बहाने उनके पास भेजा 'वीरा मोरा गज थकी हेठा उतरो, गज चढ़े केवल न होय' बहनों के ऐसे मार्मिक वचनों से बाहुबलीजी को अपनी भूल समझ में आई। मान रूपी हाथी का त्याग कर जैसे ही उन्होंने प्रभु के पास जाने के लिए कदम उठाया, वहीं मान ने भी सदा के लिए कदम उठा लिए और तुरंत केवलज्ञान प्रगट हुआ।
'धन्य है इस महापुरुष को जिसने अहंकार को जीतकर कल्याण को प्राप्त किया। उनकी वंदना करके इच्छा करें कि हम भी मान का त्यागकर, नम्र बनकर
केवलश्री के लिए प्रयत्नशाली बनें ।' ३. अभयकुमार - श्री अभयकुमारजी २५०० वर्ष बीत गए, फिर भी आज भी व्यापारी नए वर्ष के दिन