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________________ आयरिय-उवज्झाए सूत्र आयरिय-आचार्य के विषय में ।। अरिहंत भगवान की अनुपस्थिति में जैनशासन की धुरा को वहन करने का कार्य आचार्य भगवंत करते हैं । संघ और समुदाय की सम्पूर्ण ज़िम्मेदारी उन पर होती है; इससे संघ के हितचिंतक आचार्य भगवंत को जब किसी का अहित होता हुआ लगें, संघ में कहीं भी खराबी होती दिखे या शास्त्राज्ञा का उल्लंघन होता दिखे तो वे सारणा, वारणा, चोयणा और पडिचोयणा' द्वारा उसे सुधारने का प्रयत्न करते हैं । सारणादि करते समय कई बार वाणी में कठोरता, काया में कड़काई एवं आँखों में गरमी भी लानी पड़ती है । कई बार हाथ भी उठाना पड़ता है और अवसर आने पर शासन की सुरक्षा के लिए युद्ध भी करना पड़ता है । ऐसे प्रसंग को देखकर पूर्वापर का विचार नहीं करनेवाले अज्ञानी और असहिष्णु जीवों को ऐसा महसूस हो सकता है कि - ये आचार्य होकर इस प्रकार बोल सकते हैं ? ऐसा व्यवहार कर सकते हैं ? अपने शिष्य को इस तरह रूला सकते हैं ? धर्म के लिए ऐसे झगड़े कर सकते हैं ?... ऐसा कोई भी विचार, वाणी या अयोग्य व्यवहार आचार्य की आशातना है । मोक्ष की साधना करनेवाले साधक को प्रतिक्रमण करते समय उसकी क्षमापना करनी चाहिए । इस पद को बोलते हुए साधक सोचता है, 'मैं कितना पुण्यहीन हूँ; स्वहित का नाशक हूँ, गुणसंपन्न और अनेक आश्रितों का हित करनेवाले आचार्य भगवंत के प्रति ऐसे कुविचार और कुव्यवहार द्वारा मैंने अपनी आत्मा का अहित किया 1. सारणा, वारणा, चोयणा, पडिचोयणा की विशेष समझ के लिए देखें, सूत्र संवेदना-३ सुगुरुवंदन सूत्र ।
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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