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सूत्र संवेदना -
-५
आचार्य - उपाध्याये, शिष्ये साधर्मिके कुल-गणे च ।
ये मया केचित् (कृताः) कषायाः (तान्) सर्वान् त्रिविधेन क्षमयामि ।।१।।
आचार्य, उपाध्याय, शिष्य, साधर्मिक, कुल और गण के प्रति मैंने जो कषाय किये हैं, उन सभी की मैं मन, वचन, काया से क्षमा माँगता हूँ ।। १ ।।
सीसे अंजलिं करिअ, भगवओ सव्वस्स समणसंघस्स । सव्वं खमावइत्ता, अहयं पि सव्वस्स खमामि ।।२॥
शीर्षे अञ्जलिं कृत्वा, भगवतः सर्वस्य श्रमणसङ्घस्य। सर्वान् क्षमयित्वा, अहम् अपि सर्वस्य क्षाम्यामि ।।२।।
जुडे हुए हाथों को मस्तक पर लगाकर पूज्य सकल श्रमण संघ से अपने सभी ( अपराधों) की क्षमा माँगकर, मैं भी उन सबको (उनके सभी अपराधों के लिए) क्षमा करता हूँ || २ ||
भावओ धम्म- निहिअ - निय-चित्तो, सव्वस्स जीवरासिस्स । सव्वं खमावइत्ता, अहयं पि सव्वस्स खमामि ॥३॥ भावतः धर्म-निहित-निज-चित्तः, सर्वस्य जीवराशेः । सर्वान् क्षमयित्वा, अहम् अपि सर्वस्य क्षाम्यामि ।।३।।
भाव से धर्म में स्थापित चित्त वाला मैं, समस्त जीव राशि से (अपने) सभी (अपराधों की) क्षमा माँगकर, मैं भी उन सभी को (उनके सभी अपराधों के लिए) क्षमा करता हूँ ।।३।।
विशेषार्थ :
आयरिय उवज्झाए, सीसे साहम्मिए कुल - गणे अ । जे मे केइ कसाया, सव्वे तिविहेण खामेमि । । १ ॥
आचार्य, उपाध्याय, शिष्य, साधर्मिक, कुल और गण के प्रति मैंने जो कषाय किए हों, उन सब कषायों के लिए मैं मन, वचन, काया से क्षमा माँगता हूँ।। १ ।।