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सूत्र संवेदना-५
संसार से जुड़ी हुई आत्मा में आत्महित के सचोट और सफल मार्ग पर संचरण करने की शक्ति प्रगट करवाते हैं ।
इस सज्झाय में उल्लिखित प्रत्येक नाम के साथ उसकी महानता बतानेवाली कथा जुड़ी हुई है। केवल किसी व्यक्ति के नाम से कुछ नहीं होता; जब उस व्यक्ति के अंतरंग व्यक्तित्व के ऊपर गौर करें तभी कथा का वास्तविक मर्म प्राप्त किया जा सकता है। अमुक प्रकार के राजा-रानी ने अमुक प्रकार के सुख दुःख अनुभव किए, सिर्फ इतना सोचनेवाला वाचक कथा के मर्म तक नहीं पहुँच सकता।
इन सभी कथाओं में 'कथा' तो मात्र भोजन के समय प्रयोग किए जानेवाली चम्मच के समान साधन रूप है। कथा में समाया हुआ तत्त्व-ज्ञान ही स्वास्थ्यप्रद भोजनरूप है। 'सुख के समय में लिपट न जाना, दुःख में न हिम्मत हारना
सुख-दुःख सदैव टिकते नहीं, यह नीति हृदय में रखना ।' इस उक्ति के अनुसार सुख के समय, इस सज्झाय में वे महापुरुष सुख से कितने निलेप रहते थे, दुःख के समय कैसे पराक्रम और दृढ़ मनोबल से निश्चल रहते थे और मरणांत उपसर्गों में भी घबराए बिना वे मन को किस प्रकार स्वस्थ और प्रसन्न रखते थे - यह बताया गया है। खुद को कलंकित करनेवाले की उपेक्षा करके,
अपनी वर्तमान और भूतकाल की भूलों को ढूंढकर, उनकी शुद्धि के लिए कैसा प्रयत्न करते थे... इन सब बातों का विचार कर, उनका अनुसरण किया जाए तो इस सज्झाय की हर एक कथा, हर एक साधक के लिए परिवर्तन की नई दिशा बन जाएगी । उसके लिए इन सब बातों को देखने के विशिष्ट दृष्टिकोण को प्राप्त कर अपने