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भरहेसर-बाहुबली सज्झाय
१६३ जीवन में उतारना पड़ेगा। अंततः सज्झाय बोलते वक्त सभी महापुरुष और उनके सद्गुणों का स्मरण करते हुए अंतरंग परिवर्तन आने लगे और उन-उन गुणों को प्राप्त करने का प्रयत्न चालू हो जाए - यही भावना है।
जैनशासन में तत्त्व को समझने के चार उपाय बताए गए हैं - द्रव्यानुयोग, गणितानुयोग, कथानुयोग, चरणकरणानुयोग । पर चरणकरणानुयोग, द्रव्यानुयोग या गणितानुयोग द्वारा तत्त्व तक पहुँचना सबके बस की बात नहीं है। जब कि कथानुयोग अर्थात् दृष्टांत, कथा या प्रसंग आदि के माध्यम से जब तत्त्व बताया जाता है तब गुड़ में मिली हुई कड़वी दवा की तरह कथा द्वारा तत्त्व की बातें भी सामान्य जन के हृदय में आसानी से उतर जाती हैं, इसलिए महापुरुषों ने कथाएँ और सज्झायें बनाई हैं।
इस सज्झाय में देखें तो मात्र महापुरुषों के नामों का उल्लेख है, परन्तु उसे बोलते वक्त उन नामों के साथ जुड़े दृष्टांत याद करने होते हैं। उन दृष्टांतों को दर्पण बनाकर उसमें अपना जीवन देखना होता है। कुछ प्रसंगों में महापुरुषों का कैसा प्रत्याघात था और वैसे ही प्रसंगों में मैं क्या सोचता हूँ, इसकी तुलना करनी है। अंत में उनके स्तर तक पहुँचने के लिए सत्त्व संघटित करना है।
इन नामों के साथ शृंगार, वैभव, राजपाट पाने के लिए रचे गए षड्यंत्र, परस्पर गाढ़ राग आदि अनेक बातें जुड़ी हुई हैं, उनमें से साधक को वैराग्य और त्याग को ही ध्यान में लेना चाहिए।
इसमें उल्लिखित ५३ महापुरुषों तथा ४७ महासतियों के नामों की कथाएँ श्री शुभशीलगणि द्वारा रचित भरतेश्वर-बाहुबली वृत्ति में और