________________
१५८
सूत्र संवेदना-५ सोहइ फणि-मणि-किरणालिद्धउ नं' नव-जलहर तडिल्लयलंछिउ - मानों बिजली से युक्त नए (काले) बादल हों ऐसे नाग के फन के ऊपर रहे हुए मणि के किरणों से युक्त (प्रभु का देह)
सुशोभित है।
पार्श्व प्रभु के नीलवर्णी देह की अपनी एक तेजस्विता तो थी ही, उसके उपरांत प्रभु के मस्तक के ऊपर जो नाग का फन था, उसमें रहनेवाले मणि का तेज भी प्रभु के देह के ऊपर प्रतिबिंबित होता था, जिससे प्रभु का शरीर प्रखर उद्योत के कारण अत्यंत तेजस्वी बनकर शोभायमान होता था।
संकट के समय सामान्य मनुष्य का शरीर म्लान और तेजविहीन बन जाता है, जबकि लोकोत्तर पुण्य के स्वामी प्रभु का शरीर संकट के समय अधिक तेजस्वी बन गया था । पूर्वभव के वैरी कमठ के जीव ने मेघमाली देव बनकर ध्यान दशा में स्थित प्रभु के ऊपर अनेक उपसर्ग करने के लिए मूसलाधार वर्षा की। पानी बढ़ते-बढ़ते प्रभु के नाक तक पहुँच गया, फिर भी वे अपने ध्यान में ही मग्न रहें। उस समय धरणेन्द्र देव अपने परम उपकारी प्रभु की भक्ति करने के लिए देवलोक से दौड़े आए। प्रभु पर ऐसा उपसर्ग देखकर उन्होंने साँप का रूप धारण कर लिया; अपने शरीर को पादपीठ रूप बनाकर अपने फन द्वारा प्रभु के मस्तक के ऊपर एक छत्र स्थापित कर, बरसते मेघ से प्रभु की रक्षा की। तब धरणेन्द्र देव रूपी साँप के फन में रहे हुए मणि के किरण प्रभु के ऊपर पड़ने से प्रभु की काया और भी देदीप्यमान हुई।
1. नं शब्द ननु के अर्थ में है। उसका उत्प्रेक्षालंकार के रूप में प्रयोग किया गया है। 'मानों कि
बिजली से युक्त नूतन मेघ हो' वैसे प्रभु की देह सुशोभित होती है, ऐसा बताने के लिए, 'मानों कि' के लिए ननु/नं शब्द का प्रयोग किया गया है।