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________________ चउक्कसाय १५५ की चाल भी उनके उत्तम व्यक्तित्व की पहचान करवाती थी । यद्यपि इस चाल को वास्तव में कोई उपमा नहीं दे सकते, फिर भी इस जगत् में हाथी की चाल श्रेष्ठ मानी जाने के कारण प्रभु की चाल को हाथी की चाल समान कहा गया है । धीरता और नम्रता से युक्त प्रभु की मर्यादा सभर चाल, उनके गुणों की श्रेष्ठता की सूचक थी । जयउ पासु भुवणत्तय सामिउ - तीन भुवन के नाथ श्री पार्श्वनाथ भगवान जय को प्राप्त करें । ऊर्ध्व, अधो और तिरछा इन तीनों लोक में रहनेवाले सामान्य लोग तो पार्श्वनाथ भगवान को नाथ के रूप में स्वीकार करते ही हैं, पर साथ ही देवलोक में रहनेवाले महाऋद्धि संपन्न देव और देवेन्द्र या मनुष्य लोक के श्रेष्ठ राजा, महाराजा और चक्रवर्ती भी प्रभु को स्वामी के रूप में स्वीकार करते हैं। वे समझते हैं कि बाह्य दृष्टि से हमारे पास चाहे कितने भी सुख के साधन हों, तो भी हम वास्तव में सुखी नहीं है, सच्चा सुख तो इस नाथ के पास ही है और ऐसा अनंत सुख उनकी सेवा से ही मिलता है। इसलिए वे भी पार्श्व प्रभु को स्वामी के रूप में स्वीकार कर उनकी सेवा भक्ति आदि करते हैं। इस प्रकार प्रभु तीन लोक के स्वामी कहलाते हैं। श्लोक के अंतिम पद में 'काम और कषायों को जीतनेवाले, नीलवर्ण देहवाले, गजराज जैसी गतिवाले पार्श्व प्रभु की जय हो,' अपने मन की ऐसी भावना व्यक्त करते हुए साधक सेवक बनकर स्वामी से कहता है, “हे नाथ! मेरे मनमंदिर में आपकी जय हो । आज तक विषय-कषाय से सदा मेरी हार होती आई है, अब उसे रोककर हे नाथ ! आप मुझे विजय की वरमाला पहनाएँ।"
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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