SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 167
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५४ संवेदना सूत्र ज्वलंत वैराग्य होने के कारण प्रभु कभी भी स्वेच्छा से भोग में प्रवृत्त नहीं होते; निकाचित कर्म के उदय से जब प्रभु को भोग भुगतना ही पड़ता है, तब वे भोग को रोग की तरह भुगतते हैं । कर्मनाश उपाय रूप औषध की तरह भोगों को अपनाने के कारण देव, देवेन्द्र, या नरेन्द्र लक्ष्मी तुल्य भोग भुगतने के बावजूद भगवान का राग नहीं बल्कि वैराग्य ज्यादा दृढ़ बना । यदि भोग भुगतने के समय राग का अंश भी प्रभु को स्पर्श कर गया होता तो काम की विजय होती; परन्तु शूरवीर सुभटों को पराजित करनेवाला काम भी पार्श्व प्रभु के ऊपर जीत प्राप्त न कर सका। पार्श्व प्रभु के विशिष्ट वैराग्य और निरन्तर बढ़ती धर्मभावना के सामने काम के शस्त्र निष्फल गए। प्रभु के सामने बेचारे काम सुभट ने भी हार मान ली। अतः प्रभु दुर्जय कामदेव के बाणों का नाश करनेवाले कहे जाते हैं। सरस-पियंगु - वण्णु - सरस प्रियंगु जैसे रंगवाले । योग के प्रभाव से प्राप्त हुआ प्रभु का रूप और लावण्य ऐसा अलौकिक था कि उसकी उपमा तुच्छ सांसारिक पदार्थों के साथ करना असंभव है । इसके बावजूद सामान्य जन को समझाने के लिए ऐसा कहा जाता है कि प्रभु के शरीर का नीलवर्ण नीलवर्णवाली वस्तुओं में श्रेष्ठ मानी जानेवाली प्रियंगुलता जैसा था । प्रियंगुलता को देखते ही जैसे मन आकर्षित होता है, वैसे ही प्रभु के शरीर के नीलवर्ण से आँख और अंतर अत्यंत आह्लादित एवं आकर्षित होते थे। गय - गामिउ - हाथी के जैसी गतिवाले । व्यक्ति के व्यक्तित्व की पहचान उसकी चाल से होती है। यदि चाल अच्छी हो तो व्यक्तित्व भी अच्छा माना जाता है। पार्श्वनाथ प्रभु
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy