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________________ चउक्कसाय १५१ अत्यंत मजबूर किया, परन्तु क्षमा के शस्त्र द्वारा प्रभु ने उसे ऐसा परास्त किया कि क्रोध ने भी ठान लिया कि अब तो मैं प्रभु के आसपास कभी भी नहीं भटकुँगा । धरणेन्द्र की सुंदर भक्ति से प्रभु के मानादि कषाय सहजता से पुष्ट हो सकते थे; परन्तु वे तो अनंत बली पार्श्व प्रभु थे । उन्होंने नम्रता नाम के तीक्ष्ण हथियार से मान को इस तरह हराया कि प्रभु के पास मान का कोई स्थान ही न रहा । इस प्रकार मल्ल तुल्य पार्श्वनाथ प्रभु ने चारों प्रतिमल्ल रूप कषायों का पूर्णतया नाश किया था । अब प्रभु नोकषायों के नाशक किस प्रकार थे, यह बताया गया हैं : दुज्जय-मयण-बाण-मुसुमूरणु - कष्टपूर्वक जीता जा सके, ऐसे कामदेव के बाण को तोड़नेवाले । (पार्श्वनाथ प्रभु जय प्राप्त करें ।) इस दूसरे विशेषण द्वारा स्तवकार ने प्रभु के परम वैराग्य और विवेक को प्रकाशित किया है । जैसे कषायों को जीतना आसन नहीं है, वैसे ही नोकषाय स्वरूप कामवासना को जीतना भी आसान नहीं है। महामुश्किल से जीता जा सके ऐसे कामदेव के बाणों को तोड़ने का काम भी पार्श्वनाथ प्रभु ने बहुत सहजता से किया। अतः प्रभु दुर्जय मदन के बाणों को निष्फल करनेवाले हैं । मदन का अर्थ कामवासना या विषय सुख की अभिलाषा होती है। 'वेद मोहनीय' कर्म के उदय से निमित्त मिलने पर प्रगट होनेवाली भोग की इच्छा को लोक व्यवहार में कामवासना कहते हैं। निश्चयनय से सोचें तो पाँच इन्द्रियों के विषयों को भोगने की इच्छा ही काम है। कामवासनाएँ कर्तव्य-अकर्तव्य के विवेक को भूला देती हैं, उत्तम कुल की मर्यादाओं का भंग करवाती हैं और प्राप्त हुए संयमरत्न का नाश
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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