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लघु शांति स्तव सूत्र कदाग्रह को एक ओर रखकर इस सिद्धान्त पर विचार किया जाए तो जैनदर्शन के सामने सिर झुके बिना नहीं रहेगा। माध्यस्थ्य भाव सहित सूक्ष्म बुद्धि से जैनशासन में दिखाई हुई अहिंसा, रागादि नाश के उपाय या आत्मा आदि अतीन्द्रिय पदार्थ विषयक बातों का विश्लेषण किया जाए तो विचारक व्यक्ति को जैनशासन की सर्वोपरिता स्पष्ट समझ में भी आएगी और इस शासन पर उसे श्रद्धा भी अवश्य होगी । ऐसी अनेक विशेषताओं के कारण जैनदर्शन सभी धर्मों में प्रधान है।।
जैनं जयति शासनम् - जैनशासन जय को प्राप्त करता है। जगत् में तो यह शासन सर्वत्र जय प्राप्त करे ही, साथ साथ यह शासन मेरे हृदय में भी हमेशा जय को प्राप्त करे अर्थात् सर्वत्र, खासकर मेरी चित्तभूमि में यह शासन विस्तृत हो ।
“आज तक मेरे हृदय सिंहासन के ऊपर मोह का ही राज रहा है; अब यह शासन और उसका महत्व मुझे समझ में आया है । इसलिए मैं चाहता हूँ कि अब यह शासन ही मेरे हृदय पर राज करे।" यह गाथा बोलते हुए साधक को सोचना चाहिए कि,
"मेरा कैसा सद्भाग्य है कि जन्म से ही मुझे चिंतामणि से भी महान जैनशासन प्राप्त हुआ है, मुझे अपना मंगल करने कहीं जाना पड़े ऐसा नहीं है। अन्य कोई मंगल करने की मुझे ज़रूरत नहीं है। मुझे तो एक ही कार्य करना है कि इस शासन को समझू, उसमें दर्शाए गए निहित तत्त्वों को जानें, उसमें बताए गए योगमार्ग के ऊपर अडिग श्रद्धा उत्पन्न करूँ और उस मार्ग के ऊपर अप्रमत्तता से चलूँ । प्रभु ! इन सब के लिए मुझे सामर्थ्य प्रदान करें।"