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सूत्र संवेदना-५ सर्वकल्याणकारणम् - (जैनशासन) सभी कल्याण का कारण है।
जैनशासन सर्व सुख का कारण है । दुनिया में सुख का कारण सामान्यतः चिंतामणि रत्न या कल्पवृक्ष कहलाता है क्योंकि माँगने पर उन से सब कुछ मिलता है । चिंतामणि या कल्पवृक्ष तो माँगने के बाद देते हैं; जब कि जैनशासन के आराधक को बिना माँगे ही भौतिक सुख प्राप्त हो जाते हैं । कल्पवृक्ष या चिंतामणि रत्न मर्यादित सुख देते हैं, जब कि जैनशासन की साधना अमर्यादित सुख देती है और चिंतामणि आदि की ताकत मात्र भौतिक सुख देने की है; जब कि जैनशासन दुनिया के श्रेष्ठ भौतिक सुखों के साथ आध्यात्मिक सुख भी देता है । अनंत ज्ञानादि गुणसंपत्ति तथा आनंदस्वरूप मोक्ष जैनशासन की आराधना से ही प्राप्त हो सकता है । इसीलिए जैनशासन सभी कल्याणों का मार्ग कहलाता है ।
प्रधानं सर्व धर्माणाम् - (जैन धर्म) सभी धर्मों में प्रधान है। इस संसार में अनेक प्रकार के धर्म हैं। उनमें से बहुत धर्म जीवों को सुखी करने के लिए अहिंसा आदि की बात भी करते हैं; परन्तु जीवों की हिंसा से बचने के लिए जीवों के विषय में जो सूक्ष्म ज्ञान, छोटे से छोटे जीव की पहचान, उनको होनेवाली वेदना और संवेदना की स्पष्ट समझ तथा उन्हें मात्र अल्पकाल के लिए ही नहीं, परन्तु दीर्घकाल के लिए पीड़ा मुक्त करने के उपाय, जिस प्रकार जैन ग्रंथों में वर्णित हैं, वैसा वर्णन अन्यत्र कहीं वर्णित नहीं है।
जैनशासन में मात्र बाह्य दुःखों या बाह्य पीड़ाओं से मुक्त होने के उपाय नहीं हैं; बाह्य पीड़ा के कारणभूत प्रतिक्षण परेशान करनेवाले रागादि दोषों की सूक्ष्म समझ और उन दोषों को समूल नाश करने के उपाय भी बताए गए हैं । यह जैनशासन की विरल विशिष्टता है।
आत्मा, पुण्य, पाप, परलोक आदि तत्त्वों की बातें बहुत धर्मशास्त्रों