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लघु शांति स्तव सूत्र
अवतरणिका :
परमात्मा की पूजा का फल बताकर अब उस परमात्मा द्वारा बताए गए सुख का मार्ग अर्थात् जैनशासन कैसा है वह बताते हैं :
गाथा :
सर्वमङ्गलमाङ्गल्यं, सर्व-कल्याणकारणम्।
प्रधानं सर्व-धर्माणां, जैनं जयति शासनम् ।।१९।।
अन्वय :
१४१
सर्व-मङ्गल-माङ्गल्यं, सर्व-कल्याण-कारणम्।
सर्व धर्माणां प्रधानं, जैनं शासनम् जयति । । १९ । ।।
गाथार्थ :
सभी मंगलों में मंगलभूत, सभी कल्याणों का कारण, सभी धर्मों में प्रधान जैनशासन जयशील हो ।
विशेषार्थ :
सर्वमंगल - माङ्गल्यम् - ( जैनशासन) सभी मंगलों में मंगलभूत है ।
अशुभ तत्त्व जिससे दूर होते हैं, उसे 'मंगल 52 कहते हैं । व्यवहार से दुनिया में बहुत से मंगल होते हैं जैसे कि, शुभ संयोग, शुभ मुहूर्त, शुभ वस्तुएँ वगैरह; परन्तु मंगल के रूप में गिने जानेवाले इन मंगलों में विघ्नों को दूर करने का सामर्थ्य निश्चित रूप से नहीं होता; जब कि भगवान का शासन अर्थात् परमात्मा के एक-एक वचन में ऐसी ताकत होती है कि, वह अवश्य विघ्नों को दूर कर देता है एवं सर्वत्र मंगल का प्रवर्तन करता है, इसीलिए जैनशासन को सभी मंगलों में श्रेष्ठ मंगल कहा गया है ।
52. मंगल शब्द की विशेष व्याख्या के लिए देखें सूत्र संवेदना भाग-१, सूत्र - १ ।