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सूत्र संवेदना-५
इस तरह प्रभु पूजा के अनेक प्रकारों में से अपनी शक्ति, संयोग और भूमिका का विचार करके जो साधक निःस्वार्थ भाव से प्रभु की पूजा करते हैं, उनके विघ्न दूर होते हैं और वे चित्तप्रसन्नता रूप फल को तत्काल प्राप्त कर सकते हैं ।
यहाँ इतना खास याद रखना चाहिए कि सबको प्रभु पूजा का फल अपने-अपने भावों के अनुसार मिलता है। जो उत्कृष्ट भाव से सर्वस्व का समर्पण करके प्रभु पूजा करते हैं, उन्हें तत्काल मोक्ष का महासुख मिलता है और जिनकी उससे निम्नकक्षा की भक्ति है, उन्हें उनकी भक्ति के अनुरूप फल मिलता है। संक्षेप में कहें, तो प्रभु पूजा कभी भी निष्फल नहीं जाती, देर सबेर भी उसका फल ज़रूर मिलता है । यह गाथा बोलते हुए साधक को सोचना चाहिए...
"हे प्रभु ! चित्त की स्वस्थता और प्रसन्नता में ही सुख है ऐसा जानता हूँ; परन्तु भौतिक सुखों की इच्छा मेरे चित्त को अस्वस्थ बना देती है। उस दुःख को दूर करने के लिए और स्वस्थ तथा सुखी होने के लिए सैकड़ों उपाय अजमाए; परन्तु मेरी भौतिक सुख की भूख बढ़ती ही गई फलतः मैं ज्यादा दुःखी ही होता रहा। अब मुझे सुखी होने का वास्तविक मार्ग मिला है। प्रभु ! मुझे पता चला है कि इस भूख को मिटाने का सरल और सचोट उपाय आपकी पूजा है, इसलिए आज से दूसरा सब कुछ छोड़कर मुझे एक मात्र आपकी पूजा में लीन बनना है।