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लघु शांति स्तव सूत्र
१३९ ताकत प्रभु पूजा से ही प्राप्त होती है। प्रभु की पूजा करनेवाला कर्म के सिद्धांतों को समझकर उन पर श्रद्धा कर सकता है। इस कारण अशुभ कर्मोदय के काल में वह घबराता नहीं है, दीन नहीं होता और प्रसन्न भाव से सभी प्रतिकूलताओं को सहन करता है। अच्छे-बुरे सभी संयोगों में मन स्वस्थ रखता है।
अब उपसर्गों का क्षय, विघ्नों का विनाश और चित्त की प्रसन्नता जिससे प्राप्त होती है, उसे बताते हैं :
पूज्यमाने जिनेश्वरे - जिनेश्वर की पूजा करने से (उपरोक्त लाभ होते हैं।)
जब परमकृपालु परमात्मा की भावपूर्वक भक्ति होती है, तब उपसर्गों के नाश से लेकर मन की प्रसन्नता तक के लाभ प्राप्त होते हैं। 'पूजा' अर्थात् गुण के प्रति आदर व्यक्त करनेवाली मन, वचन, काया की प्रवृत्ति। रागादि आंतरिक शत्रुओं को जीतकर अनंत गुण के स्वामी बने भगवान के उन-उन गुणों को प्राप्त करने के लिए या उनउन गुणों के प्रति प्रीति, भक्ति बढ़ाने के लिए भक्त अपनी भूमिका अनुसार अनेक प्रकार से भक्ति करते हैं। कोई पुष्प, जल, चंदन आदि सामान्य द्रव्य से प्रभु की पूजा करता है तो कोई केसर, कस्तुरी, हीरा, माणिक, मोती जैसे उत्तम द्रव्यों से प्रभु की पूजा करता है । कोई प्रभु के चरणों में थोड़ा, कोई बहुत, तो कोई सबकुछ समर्पित कर देता है। प्रभु के चरणों में जीवन समर्पित करनेवाले श्रेष्ठ महात्मा मात्र वचन
और काया को ही नहीं अपने मन को भी प्रभु वचन से लेश मात्र विचलित नहीं होने देते। सर्वत्र प्रभु की आज्ञानुसार ही चलते हैं। उनका एसा समर्पण ही सर्वश्रेष्ठ पूजा कहलाती है।