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लघु शांति स्तव सूत्र
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गाथार्थ :
जो इस स्तव को हमेशा विधिपूर्वक पढ़ते हैं, सुनते हैं अथवा (मंत्रयोग के नियम के अनुसार जो इसकी) भावना करते हैं, वे और श्री मानदेवसूरीश्वरजी भी शांतिपद को प्राप्त करें। विशेषार्थ :
यश्चैनं (यथायोगं)49 पठति सदा - और जो कोई इस स्तव को (यथायोग्य प्रकार से) हमेशा पढ़ते हैं।
जो इस स्तव को हमेशा योग्य रीति से पढ़ते हैं अर्थात् शांतिनाथ भगवान, जयादेवी और मंत्रपदों के प्रति आदर-बहुमान रखकर, उनमें मन को एकाग्र करके आत्मा में विशिष्ट भाव प्रगटाकर जो इस स्तव को पढ़ते हैं, वे शांति प्राप्त करते हैं।
इस प्रकार अर्थात् योग्य प्रकार से इस स्तव का पठन तभी हो सकता है जब शास्त्रानुसार विधिपूर्वक गीतार्थ गुरु भगवंत के पास जाकर, विनयपूर्वक, शुद्ध शब्दोच्चारणपूर्वक इस स्तव को ग्रहण किया जाये । इस तरह ग्रहण करके अगर तदनुसार इस स्तव का पठन किया जाए तो उसके उच्चारण मात्र से भी बहुत से कर्मों का नाश होता है और अलौकिक भाव आत्मा में प्रगट होते हैं।
'यथायोगम्' अर्थात् जिस प्रकार की विधि है उस प्रकार । मंत्र शास्त्र के जो नियम हैं, मंत्रसिद्धि के लिए जो-जो कार्य किये जाते हैं, उनमें से किसी भी नियम का उल्लंघन किए बिना जो पुरुष इस स्तवन को पढ़ता है, वह आगे बताए गए शांतिपद को प्राप्त करता है।
49. यथायोग यहाँ क्रियाविशेषण है । इसलिए तीन क्रियाओं के साथ उसका संबंध है ।
यथायोगं योगमनतिक्रम्य योगं योगं प्रति वा यथाकार्यमुद्दिश्य वा ।