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सूत्र संवेदना-५ स्तव पानी, अग्नि, विष या रोगादि के अनेक उपद्रवों का नाश करता है; इतना ही नहीं परन्तु शांति, तुष्टि और पुष्टि भी प्रदान करता है । _ 'भक्तिमताम्"48 का प्रयोग करके स्तवकारश्री स्पष्ट करते हैं कि इस स्तव के प्रभाव का अनुभव भक्त ही कर सकते हैं। जिन्हें इस स्तव के प्रति या शांतिनाथ भगवान के प्रति भक्तिभाव नहीं है और फिर भी यह स्तव बोलते हैं या मंत्र का जाप करते हैं, उनको इस स्तव से कोई विशेष लाभ नहीं होता, मात्र सामान्य पुण्य बंध ही होता है। अवतरणिका:
अब शांतिस्तव का विशेष फल बताते हैं : गाथा : यश्चैनं पठति सदा शृणोति भावयति वा यथायोगं । स हि शान्तिपदं यायात् सूरिः श्रीमान्देवश्च ।।१७।। अन्वयः यः च एनं सदा यथायोगं पठति शृणोति भावयति वा । स श्रीमानदेवःसूरिः च हि शान्तिपदं यायात् ।।१७।।
48. भक्तिपूर्वक अनुष्ठान करनेवाला अर्थात् मंत्र-साधक । उसका लक्षण भैरव पद्मावती कल्प के
प्रथम मंत्र-लक्षणाधिकार के आधार पर नीचे बताया गया है । "शुचिः प्रसन्नो गुरु-देव-भक्तो, दृढव्रतः सत्य-दया-समेतः । दक्षः पटुबीजपदावधारी, मन्त्री भवेदीदृश एव लोके ।।१०।।" अर्थ : शुचिः-बाह्य और आभ्यन्तर पवित्रतावाला, प्रसन्नः-सौम्य चित्तवाला, गुरु-देव-भक्तः गुरु और देव की योग्य भक्ति करनेवाला, दृढवतः-ग्रहण किए हुए व्रत में अतिदृढ़, सत्यदया-समेतः-सत्य और अहिंसा को धारण करनेवाला, दक्षः-अति चतुर, पटुः-बुद्धिशाली, बीजपदावधारी-बीज तथा अक्षर को धारण करनेवाला, ईदृशः-ऐसा पुरुष, लोके-इस जगत में, मन्त्री-मंत्र साधक, भवेत्-होता है ।
- भैरव पद्मावती कल्प